चल पड़ा है नया साल घर से सुनो...

Dec 31, 2008

बहुत डरता हुआ,  सकपकाता हुआ,
थोड़ा चलता अधिक लड़खडाता हुआ,
अपने मुंह को ज़रा सा छुपाता हुआ,
चल पड़ा है नया साल घर से सुनो,
 
उसको मालूम हैं आठ के ठाठ भी,
बम से गोली तक उसने पढ़े पाठ भी,
हाथ में है लिए उल्लू भी काठ भी,
चल पड़ा है नया साल घर से सुनो,
 
तुम हंसो तालियां भी बजाओ ज़रा,
नाचो, फिल्मी वो गाना भी गाओ ज़रा,
फोटो खिंचनी है अब मुस्कुराओ ज़रा,
चल पड़ा है नया साल घर से सुनो,
 
नौ में नौ मन यहाँ तेल हो जायेगा,
राधा नाचेगी सब खेल हो जायेगा,
कृष्ण का विप्र से मेल हो जायेगा,
चल पड़ा है नया साल घर से सुनो...
 
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Abhinav Shukla
206-694-3353
P Please consider the environment.

5 प्रतिक्रियाएं:

आशा और निराशा लिए यह नया साल चल पडा है तो कहीं न कहीं मंजिल मिल ही जाएगी - शांति और समृद्धि को ; यही आशा करते हुए इस कविता और नववर्ष की बधाई, भाई अभिनवजी।

वाह वाह। बहुत सुन्दर कविता।
और आपको नया साल मिलने ही वाला होगा; वह बहुत मंगलमय हो जी।

36solutions said...

अंग्रेजी नये वर्ष की शुभकामनायें ।

सुंदर रचना गुरूभाई...
नये साल की आपको भी ढ़ेर सारी शुभकामनायें..अथर्व को भी...और ईश्वर करे आने वाले नये साल में आपकी लेखनी और चमके

शुभ हो नये वर्ष में हर दिन, रातें बीतें हुई रुपहली
रहे चाँदनी रात, न छाये चन्दा पर कोई भी बदली
सपने ढलें एक प्रतिमा में, चाहों को उत्कर्ष मिल सके
सावन छेड़े नित मृदंग औ फ़ागुन पंथ बजाये ढपली