जूता ऑन बुश, दुनिया खुश - एक जूतात्मक लेख

Dec 17, 2008


एक इराकी पत्रकार नें बुश पर जूता चला कर भले ही अचानक संसार का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया हो परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि जूता चलाने कि कला पर इराक वालों का पेटंट हो गया हो.  हम भी जूता चलाना जानते हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही हमने जूते मार मार कर तसलीमा नसरीन को देश से बाहर कर दिया था. ये अलग बात है की हम जूते के साथ कुर्सी मेज़ और गुलदान भी फ़ेंक रहे थे, क्योंकि तसलीमा का अपराध बुश से अधिक जघन्य था.
 
कोई बड़ी बात नहीं है की बुश के समर्थन में भी भारत में कोई बैठक हो जिसमें उनके जूते से बचने की फुर्ती का श्रेय जेम्स बांड की फिल्मों को दिया जाए. एक मिनट को सोचिये की यदि यह जूता बुश की बजाय अपने किसी बड़े नेता पर चला होता तो कैसा दृश्य होता.  जूता हमारे मान्य मंत्री महोदय को मिस न कर पाता, शरीर के किसी न किसी भाग को तो छू ही जाता. हमारी पुरातन संस्कृति के विस्तार की ही भांति हमारे शरीरों का विस्तार भी दूर दूर तक है..  जूता खाने के बाद या तो मंत्री बेहोश हो जाता या फिर ऐसा आचरण करता की मानो कुछ हुआ ही न हो. यह मंत्री महोदय का पहला जूता न होता अतः उनके पास जूते से निपटने का प्लान पहले से तैयार होता. यदि चुनाव पास होते तो जूता मारने वाले को मंच पर बुला कर उसका स्वागत भी किया जा सकता था. अगले दिन समाचार पत्र में जूता मारने वाले के साथ गले में बाहें डाले मंत्री जी का चित्र छपता.  आवश्यकता पड़ने पर जूता खाने के बाद एक जूता समिति का गठन होता जिसकी जांच लंबे समय तक चलती.
 
खैर, बुश के जूता खाने से सभी खुश हैं. जिन्होंने मारा वो इसलिए खुश हैं की देखो मारा, और बाकी इसलिए खुश हैं की देखो बच गए, लगा ही नहीं.
 
जब जूते की चर्चा चल ही रही है तो गुरु मन तो हमारा भी है कि चित्रकार एम् ऍफ़ हुसैन को दो जूते सम्मानपूर्वक धर दिए जाएँ. सुना है वो नंगे पैर रहते हैं, इस बहाने उनको जूते मिल भी जायेंगे और हमको भी तसल्ली हो जायेगी की हमने भी दिल की भड़ास निकाल ली.  वैसे जूते से न तो बुश सुधरेंगे और न ही हुसैन.
 
अच्छी कोशिश थी,
मगर चलो कोई बात नहीं,
गैंडे की खाल पे,
जूतों का असर क्या होगा.
 
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Abhinav Shukla
206-694-3353
P Please consider the environment.

1 प्रतिक्रियाएं:

शानदार लेख. जूता बूस पर नहीं, लोकतंत्र की अवधारणा पर चला है.