एक छंद

Sep 4, 2010

कल रात सपने में आई एक परछाई,
कह गयी मन की उमंग न बदलना,
झूठ की हवाएं चाहे जितनी चिरौरी करें,
सत्य बोलने का कभी ढंग न बदलना,
शब्द शब्द ब्रह्म मान रचना नवल गीत,
टूट टूट गाने की तरंग न बदलना,
कविता से तालियों की रंगत रहे न रहे,
तालियों से कविता का रंग न बदलना.

- अभिनव

7 प्रतिक्रियाएं:

Udan Tashtari said...

कविता से तालियों की रंगत रहे न रहे,
तालियों से कविता का रंग न बदलना

-बिल्कुल सही!

दमदार पंक्तियाँ।

अच्‍छी सीख देती रचना।
उन कवियों के लिए जो कवि सम्‍मेलनों में तालियों के लिए कुछ भी तुकबंदी करते रहते हैं और कवि सम्‍मेलनों की गरिमा का भी ख्‍याल नहीं करते।
बधाई हो आपको। आपने तो आईना दिखा दिया।

अभिनव भाई सप्रेम नमस्कार|
आपने काफ़ी प्रभावित किया बन्धु इस घनाक्षरी कवित्त को पढ़वा के|
आप http://samasyapoorti.blogspot.com/ ब्लॉग पर पधार के साहित्य सेवा में हाथ बटाइएगा

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

abhinav ji ..aapki yah rachnaa aaj charchamanch par rakhi thee... aapko inform karne me deri huvi... kintu aapko link de rahi hun...
http://charchamanch.blogspot.com/2011/02/blog-post_18.html

aapki is sundar rachna ke liye badhai aur aabhaar..

समस्या पूर्ति मंच पर घनाक्षरी छन्द पर आयोजन जारी है, पधारिएगा|
http://samasyapoorti.blogspot.com/