कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी,
ये नगर की खामोशी वो शहर की खामोशी,
सब तो बोल देती है इस नज़र की खामोशी,
जाने किस सफ़र पर है मेरे घर की खामोशी,
लखनऊ से गुज़रे हैं लोग तो बहुत से मगर,
साथ सिर्फ़ कुछ के है उस डगर की खामोशी.
Abhinav Shukla
206-694-3353
अलार्म बज बज कर, सुबह को बुलाने का प्रयत्न कर रहा है, बाहर बर्फ बरस रही है, दो मार्ग हैं, या तो मुँह ढक कर सो जाएँ, या फिर उठें, गूँजें और 'निनाद' हो जाएँ।
Abhinav Shukla is recognized as a talented Hindi poet who transforms our hectic lifestyles to humor and happiness with his simple words and brilliance of presentation. Abhinav’s thoughtful poems on the latest national and international issues have attracted the attention of critics and media in the past. He was the co-editor of famous literary magazine “Hindi Chetna” for about 10 years. He has appeared on several television and radio shows in India & abroad and has participated in poetic tours across multiple nations. He has been felicitated for his poetry by more than 100 reputed organizations across US, Canada and India. He has spent a fair part of his life in Lucknow, attributing his poetic talents to this city. He earned his Bachelor's degree in Technology from Rohilkhand University, Bareilly. He did his Masters from BITS, Pilani. He is working as a Director of Engineering in an education system based firm in Folsom CA.
लोकप्रिय कवि तथा व्यंगकार अभिनव शुक्ल हिन्दी काव्य मंचों पर अपने गुदगुदाते घनाक्षरी छंदों के लिए पहचाने जाते हैं| अपने आस पास घटने वाली घटनाओं से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बड़ी बेबाकी से कसे उनके व्यंग बाण किसी पत्थर का भी दिल आर पार करने की क्षमता रखते हैं| अभिनव की रचनायें शताधिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं| अनेक अवसरों पर रेडियो और टीवी चैनलों पर उनका काव्य पाठ प्रसारित हो चुका है| उनके वीडियो वायरल होने के रिकार्ड्स बना चुके हैं| हिन्दी कविता के लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम 'कवितांजलि' में अभिनव के संचालन को श्रोता आज भी याद करते हैं| अभिनव बैंगलोर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र 'दक्षिण भारत' के नियमित व्यंग स्तंभकार भी रहे हैं| लगभग दस वर्ष तक कनाडा से निकलने वाली लोकप्रिय पत्रिका हिंदी चेतना के सह संपादक होने के साथ साथ वे ई-विश्वा (अमेरिका), कवितांजलि (बैंगलोर) समेत अनेक पत्रिकाओं के संपादक/संरक्षक मंडल में रह चुके हैं| अभिनव को देश विदेश की लगभग सौ संस्थाएं उनकी कविताओं के लिए सम्मानित कर चुकी हैं| अभिनव संसार के विभिन्न देशों में होने वाली काव्य यात्राओं में अपनी सुमधुर उपस्तिथि दर्ज कर चुके हैं| अभिनव फिलहाल कैलिफोर्निया राज्य की फॉल्सम नामक नगरी में रह रहे हैं तथा अपनी कविताओं की सुगंध सारे संसार में बसे काव्य प्रेमियों के हृदय हृदय में बिखेर रहे हैं| अभिनव बिरला इन्सटीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी से साफ्टवेयर सिस्टम्स में स्नातकोत्तर तथा रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली से वैद्युत अभियांत्रकी में स्नातक हैं| वे सम्प्रति में एक प्रतिष्ठित कम्पूटर सम्बन्धी प्रतिष्ठान के गुणवत्ता विभाग में निदेशक हैं|
7 प्रतिक्रियाएं:
अभिनव भाई आपकी गजल मुझे बहुत पसंद आई
ये शेर कास कर अच्छा लगा
हिंदी और उर्दू में सिर्फ़ फ़र्क इतना है,
ये नगर की खामोशी वो शहर की खामोशी
नियमित लिखिए और ब्लॉग को अपडेट करिए कम से कम समर्थक लिंक तो लगा दीजिये
वीनस केसरी
और क्या कहूँगा मैं और क्या सुनोगे तुम,
सब तो बोल देती है इस नज़र की खामोशी,
--बहुत बेहतरीन, अभिनव!! नियमित लिखो!!
बहुत सुन्दर! नगर और शहर की खामोशी! मैं सोचता था कि केवल गांव देहात ही खामोश रहता है। शहर/नगर तो शोर/नगाड़े के स्थल हैं।
बहुत अच्छे , बहुत बोलती है ये नजर की खामोशी
काफिया बदल कर कहता हूं ।
इस बहाने टूटी तो, शुक्ल जी की खामोशी
हा हा हा...
गुरू जी की टिप्पणी पढ़ी देव ?
सुन्दर!
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