मौन की भाषा को समझना,
फिर भी सरल है,
कठिन तो होता है,
शब्दों के वास्तविक अर्थ को जानना,
भाषा में छिपे मौन को पहचानना.
- अभिनव
अलार्म बज बज कर, सुबह को बुलाने का प्रयत्न कर रहा है, बाहर बर्फ बरस रही है, दो मार्ग हैं, या तो मुँह ढक कर सो जाएँ, या फिर उठें, गूँजें और 'निनाद' हो जाएँ।
मौन की भाषा को समझना,
फिर भी सरल है,
कठिन तो होता है,
शब्दों के वास्तविक अर्थ को जानना,
भाषा में छिपे मौन को पहचानना.
- अभिनव
2 प्रतिक्रियाएं:
सुन्दर।
भाषा में उस छुपे मौन को पहचानेगा कौन।
मौन की भाषा तब होती जब भाषा होती मौन।।
अभिनव जी - जैसा कि आपने कहा था आप जमशेदपुर आनेवाले हैं। सोचा था मुलाकात होगी। क्या प्रोग्राम नहीं बना?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ओह मौन बहुत बोलता है - सुनने वाले ध्यान नहीं देते!
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