एक और जन्मदिवस

May 17, 2009

एक और जन्मदिवस आ गया है द्वार पर,
 
सूर्य की परिक्रमाएं तीस कर चुका है तन,
व्योम में भटक भटक के लक्ष्य ढूंढता है मन,
ज़िम्मेदारियों की झील धीरे धीरे भर गई,
केशराशि कुछ जगह और खाली कर गई,

लो अधेड़ उम्र की तरफ चली नई नदी,
लग रहा है मानो कुछ बुढा गई नई सदी,
रंग कितने आये गए ज़िन्दगी के फूल में,
कितनी ग़लतियां हुई हैं हमसे भूल भूल में,

मित्र कितने खो गए हैं रस्ते के मोड़ पर,
कितनी बार दो को घटाया है एक जोड़ कर,
अंकगणित, बीजगणित, भौतिकी, त्रिकोणमति,
अभियांत्रिकी बनी काव्य की अजस्र गति,

अगले प्लेटफार्म की और चले कोच पर,
थोडी देर बैठते हैं आज यही सोच कर,
क्या ग़लत किया है हमनें और क्या सही किया,
क्या जो करना चाहिए था आज तक नहीं किया,

आस्था के आसमान उड़ रही पतंग की,
डोर थाम कर चलें संभल संभल के धार पर,
एक और जन्मदिवस आ गया है द्वार पर.

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Abhinav Shukla
206-694-3353
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8 प्रतिक्रियाएं:

सुंदर विचार कविता। बधाई!

Udan Tashtari said...

जन्मदिन की बधाई एवं शुभकामनाऐं.

(लगता है १० साल बाद की कविता अभी से जवानी मे तैयार कर रख ली है)

रंजना said...

बहुत बहुत सुन्दर कविता.....भाव कथ्य शिल्प ...सब बेजोड़....
बहुत ही अच्छी लगी...

परन्तु जन्म दिवस के अवसर पर यह नैराश्य भाव क्यों.....

जन्म दिवस की अनंत शुभकामनाएं.....

सुन्दर लेखन अनवरत गतिमान रहे....

इतनी जल्दी कहाँ अधेड़पन यार. थर्टी को 'न्यू ट्वेंटी' कहते हैं.
जन्मदिन की बधाई!

Reetesh Gupta said...

मित्र कितने खो गए हैं रस्ते के मोड़ पर,
कितनी बार दो को घटाया है एक जोड़ कर,

बहुत सुंदर ...अभिनव भाई को जन्मदिन की हार्दिक बधाई

Ranjan said...

लेखन का सुन्दर चित्रण , परन्तु विचारों के अभिनव नवीन रत्नों को एक डोर मई पिरोने का प्रयास विफल सा प्रतीत होता है , इसी कारण से संभवतः शीर्षक का मेल भी उतना नहीं है .

Unknown said...

bahun hi umda , uchch , utttam! badhai ho

Unknown said...

Bahut hi umda.