अलार्म बज बज कर, सुबह को बुलाने का प्रयत्न कर रहा है, बाहर बर्फ बरस रही है, दो मार्ग हैं, या तो मुँह ढक कर सो जाएँ, या फिर उठें, गूँजें और 'निनाद' हो जाएँ।
लोकप्रिय गीतकार गोपालदास नीरज जी के एक गीत से प्रेरित होकर यह रचना लिखी गई।दृग सूरज की गर्मी से रक्तिम हो आए,जीवन समस्त लाशों को ढ़ोते बीत गया,पर मृत्यु तेरे आलिंगन के आकर्षण में,छोटा सा तिनका भी पर्वत से जीत गया,सागर असत्य का दूर दूर तक फैला है,अपनों पर अपने बढ़कर तीर चलाते हैं,पर काल सामने से है जब करता प्रहार,हम जाने क्यों छिपते हैं क्यों घबराते हैं,गोधुली का होना भी तो एक कहानी है,जो शनैः शनैः ओर निशा के बढ़ती है,दीपक की परिणति भी है केवल अंधकार,कजरारे पथ पर जो धीरे से चढ़ती है,मधुबन की क्यारी में हैं अगणित सुमन मगर,जो पुष्प ओस की बूँदों पर इतराता है,उसमें भी है केवल दो दिन का पराग,तीजे नज़रों को नीचे कर झर जाता है,बादल नभ में आ घुमड़ घुमड़ एकत्रित हैं,प्यासी घरती पर अमृत रस बरसाने को,कहते हैं सबसे गरज गरज कर सुनो कभी,हम तो आए हैं जग में केवल जाने को,पत्थर से चट्टानों से खड़ी मीनारों से,तुम सुनते होगे अकबर के किस्से अनेक,जब हुआ सामना मौत के दरिया से उसका,वह वीर शहंशाह भी था घुटने गया टेक,वह गांधी ही था जिसकी आभा थी प्रसिद्ध,गाँवों गाँवों नगरों नगरों के घर घर में,वह राम नाम का धागा थामे चला गया,उस पार गगन के देखो केवल पल भर में,मैं आज यहाँ हूँ इस खातिर कल जाना है,अपनी प्रेयसी की मदमाती उन बाँहों में,जो तबसे मेरी याद में आकुल बैठी है,जब आया पहली बार था मैं इन राहों में,मेरे जाने से तुम सबको कुछ दुख होगा,चर्चा कर नयन भिगो लेंगे कुछ सपने भी,दो चार दिवस गूँजेगी मेरी शहनाई,गीतों को मेरे सुन लेंगे कुछ अपने भी,फिर नई सुबह की तरुणाई छा जाएगी,कूकेगी कोयल फिर अम्बुआ की डाली पर,फिर खुशियों की बारातें निकलेंगी घर से,हाँ बैठ दुल्हन के जोड़े की उस लाली पर,सब आएँ हैं इस खातिर कल जाना है,उस पार गगन के ऊँचे अनुपम महलों में,मिट्टी की काया से क्षण भर का रिश्ता है,सब पत्तों से बिखरे हैं नहलों दहलों में,हम काश समर्पित कर पाएँ अपना कण कण,रिश्तों की हर इक रस्म निभानी है हमको,जीलो जीवन को पूरी तरह आज ही तुम,बस यह छोटी सी बात बतानी है हमको।
पर मृत्यु तेरे आलिंगन के आकर्षण में,छोटा सा तिनका भी पर्वत से जीत गया,बहुत खूब। अच्छा गीत बन पडा है।*** राजीव रंजन प्रसाद
हम काश समर्पित कर पाएँ अपना कण कण,रिश्तों की हर इक रस्म निभानी है हमको,जीलो जीवन को पूरी तरह आज ही तुम,बस यह छोटी सी बात बतानी है हमको। बहुत बढ़िया अभिनव भाई...बधाई
पढा़, सुना और चिन्तन किया|गीत अच्छा लगा!
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3 प्रतिक्रियाएं:
पर मृत्यु तेरे आलिंगन के आकर्षण में,
छोटा सा तिनका भी पर्वत से जीत गया,
बहुत खूब। अच्छा गीत बन पडा है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
हम काश समर्पित कर पाएँ अपना कण कण,
रिश्तों की हर इक रस्म निभानी है हमको,
जीलो जीवन को पूरी तरह आज ही तुम,
बस यह छोटी सी बात बतानी है हमको।
बहुत बढ़िया अभिनव भाई...बधाई
पढा़, सुना और चिन्तन किया|
गीत अच्छा लगा!
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