हैदराबाद की मक्का मस्जिद की सीढ़ियों पर न जाने कितनी बार मैने बैठ कर कबूतरों को दाना चुगते हुए देखा है। नमाज़ी आते वजू करते और नमाज़ पढ़ने चले जाते। प्रेमचंद जी की ईदगाह कहानी में नमाज़ के वर्णन का मूर्त रूप मैंने पहली बार मक्का मस्जिद में ही देखा, प्रेमचंद जी नें कुछ ऐसा लिखा है।
"सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, कई बार यही क्रिया होती हे, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाऍं, और यही क्रम चलता, रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाऍं, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए हैं।"
चारमीनार के सामने बना ये मस्जिद ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण है। आज जब समाचार सुना कि वहाँ भी विस्फोट हो गया है तो समझ में नहीं आया कि क्या करूँ। पहले बनारस का संकट मोचन मंदिर और अब मक्का मस्जिद ये दोनों ऐसे स्थल थे जहाँ मैंने समय बिताया है और आज दोनों जगहों पर विस्फोट हो चुके हैं, खून बह चुका है तथा दिल टूट चुके हैं। संकट मोचन मंदिर में होने वाली आरती की भव्यता भी देखते बनती है। ऐसा मानते हैं कि बजरंग बली की जो मूर्ती मंदिर में है उसे स्वयं तुलसी बाबा नें अपने हाथों से बनाया है।
क्या है इसक पागलपन का अंत और कैसी है ये मानसिकता जो मासूमों के खून से अपने भाग्य को लिखना चाहती है। मैं चाहता हूँ ये सब खत्म हो, पर कैसे यह नहीं जानता। कभी लगता है यदि कानून अपना काम ठीक से करे तो शायद सब ठीक हो जाए। कुछ भाव नीचे लिखी पंक्तियों में बाहर आए पर अभी बहुत से भाव बचे हैं जो न जाने कब फूटेंगे।
कहाँ अब प्यार बसता है हमारे देश में प्यारे,
सदा कुछ दिल में धंसता है हमारे देश में प्यारे,
कभी हिंदू कभी मुस्लिम कभी सिख या ईसाई का,
बहाओ खून सस्ता है हमारे देश में प्यारे,
सड़क पर देखते ही एक दूजे को कत्ल कर दो,
यही क्या एक रस्ता है हमारे देश में प्यारे,
अमां तुम शान से नफरत की उलटी कौम पर कर दो,
कभी नेता भी फंसता है हमारे देश में प्यारे,
कभी हम भी बहे थे हैदराबादी हवाओं में,
मगर अब हाल खस्ता है हमारे देश में प्यारे।
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मक्का मस्जिद और मैं
May 20, 2007प्रेषक: अभिनव @ 5/20/2007
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11 प्रतिक्रियाएं:
बहुत सुंदर रचना. मर्म उभर कर आया है. यह बम काण्ड एक बहुत दुखद और अति निन्दनीय घटना है.
जब ऐसी घटना होती है, तब एक क्षण के लिए सोचने पर मजबुर हो जाते है की आखिर खून किस मकसद के लिए बहाया जा रहा है?
अभिनव जी,पहले तो एक अच्छे लेख व अच्छी भाव प्रधान रचना के लिए बधाई।मक्का मस्जिद की घट्ना व अन्य विस्फोटॊ के लिए कौन जिम्मेवार है,यह तो पता नही,लेकिन हम भी अपने आस-पास होने वाली घट्नाओं के प्रति सचेत नही हैं। हमे स्वयं ही अपनी सुरक्षा हेतू अपना प्रहरी बनना पड़ेगा।
बड़ी दुखद घटना पर ये पंक्तियां भाव पूर्ण हैं!
कुछ लोग ऐसे हैं जो धर्म और ईमान की आड़ में फरेब बेचते हैं, उन्हें रोकना होगा-दीपक भारतदीप
बहुत दुखद घटना है यह पता नहीं इंसानियत के दुश्मनों को इस सबसे क्या हासिल होता है।
बहुत खूबसुरत वर्णन किया है आपने हैदराबाद की मक्का मस्जिद का.. नमाज के लिये कही गयीं मुंशी प्रेम्चंद की पंक्तियां..बनारस के संकटमोचन की झलक भी सुंदर है..
जो हुआ वो बहुत दुखदायी है.. कभी तो वक्त बदलेगा..
आपकी लिखी हुई कविता भी मार्मिक और दिल को छोने वाली है..
समीर भाईसाहब, संजय भाई, परमजीतजी, अनूप दद्दा, दीपकजी, शिरीष जी तथा मान्या जी
आप सबकी टिप्पणियों के लिए आपका धन्यवाद, ऐसी घटनाएं मानस के पटल को झकझोर देती हैं और जब उन स्थानों पर ऐसी घटनाएँ घटती हैं आप जिनके आस पास रह चुके होते हैं तो ये झकझोर कुछ अधिक ही होती है।
बहुत सही कहा आपने अपने लेख और उन्हीं मनोभावों को प्रकट करती अपनी कविता में !
कहाँ अब प्यार बसता है हमारे देश में प्यारे,
सदा कुछ दिल में धंसता है हमारे देश में प्यारे,
आपकी स्मृतियाँ और कविता अच्छी लगी...बधाई
रीतेश भाई, मनीष जी, आपकी प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
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