मेरे प्रगतिशील मित्र,
दुनिया भर की ऊट पटांग,
बातों में सिर खपाते हैं,
मधुमक्खियों के शहद समेटने को,
एक रानी मक्खी द्वारा किया हुआ शोषण बताते हैं,
गरीबी को महिमा मण्डित करते हुए,
एक झूठी लाल सुबह के सपने दिखाते हुए।
कुछ लोग कहते हैं,
सभी बुराइयों की जड़ में पैसा है,
कुछ कहते हैं,
पैसे के न होने के कारण ही ऐसा है,
मुझे लगता है,
इसका धन से कोई संबंध नहीं है,
बुरा या भला होना मात्र एक पड़ाव है,
और यह मानव का नितांत व्यक्तिगत चुनाव है,
ऐसा कौन सा स्थान है,
जहाँ बुराई और भलाई की एक दूसरे को चुनौती नहीं है,
यह किसी एक वर्ग की बपौती नहीं है।
ईश्वर की सत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं,
पुरुस्कारों और कुर्सियों के निकट पाए जाते हैं,
पहनते हैं फटा हुआ कुर्त्ता दिखाने को,
शाम होते ही मचलते हैं मुर्गा खाने को,
नशे में डूबे हुए,
पलकें झपकाते हुए,
गालियाँ बकते हुए,
प्रगति से चिपकते हुए,
मेरे प्रगतिशील मित्र।
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मेरे प्रगतिशील मित्र
May 21, 2007
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14 प्रतिक्रियाएं:
वाह वाह बहुत खुब..
सही कहा.
मुझे लगता है,
इसका धन से कोई संबंध नहीं है,
बुरा या भला होना मात्र एक पड़ाव है,
और यह मानव का नितांत व्यक्तिगत चुनाव है,
ऐसा कौन सा स्थान है,
जहाँ बुराई और भलाई की एक दूसरे को चुनौती नहीं है,
यह किसी एक वर्ग की बपौती नहीं है।
वाह, अभिनव जी बिलकुल सही कहा आपने । बेहद पसंद आईं ये पंक्तियाँ !
वाह भई.. प्रगतिशीलों की अच्छी खबर ली आपने..
अभिनव जी बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जी हां
हमें अपना उल्लू सीधा करना है
इसीलिये
पहनते हैं हम
मुखौटा
संवेदना का
चिल्लाते हैं
शोषण ( क्योंकि हम नहीं कर पाये )
निर्धनता ( हमें अपनी दूर करनी है )
गुलामी ( हमें अपने लिये सेवकों की तलाश है )
हाँ
इसी तरह तो प्रगति होती है
हम
अब भी प्रगतिशील हैं........
वाह वाह, क्या बात कही है!! बहुत खुब!
प्रगतिशीलता का पेटेन्ट रखने वाले सोवियत संघ के विघटन के बाद से पूंजी, श्रम, सर्प्लस, बुजुर्वा आदि का प्रयोग करने से कतराते नजर आते हैं। और अब उन्होने नकारात्मकता के हथियार के प्रयोग का प्रशिक्षण ले लिया है। आप कहेंगे क्यों - उत्तर बहुत साफ है - काना यही चाहता है कि अच्छा होता दुनिया में सभी काने होते। जबसे उनके खोखले सिद्धान्तों की पोल खुल गयी तब से सब के सब विक्षिप्तावस्था में जी रहे हैं। अब भी विश्वास नहीं हो रहा ? एक नजर राजेन्द्र, हुसैन, अरुन्धति, नामवर आदि के कथनो पर तो डालिये। कुछ भी सकारात्मक मिला?
अभिनवजी, बहुत ही कुशलतापूर्वक आपने प्रगतिशील एक्टिविस्टों का असली चेहरा उजागर कर दिया है।
इसका धन से कोई संबंध नहीं है,
बुरा या भला होना मात्र एक पड़ाव है,
और यह मानव का नितांत व्यक्तिगत चुनाव है,
सही है भाई ...बधाई
अभयजीः अरे हम क्या ख़बर लेंगे, जो देखा सो लिखा, आपकी प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
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राकेशजीः सही जवाब, आपको जन्मदिन की एक बार पुनः बधाई।
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अनुनाद भाईसाहबः अंध पंथानुसरण में सकारात्मकता ढूँढना ही पाप है, पर जो नाम आपने लिए हैं मैं उनके कुछ लेखों से बड़ा प्रभावित हुआ हूँ। अरुंधति की लेखनी में जो अग्नि का तत्व है वह अनुकरणीय है, यह सत्य है कि विचार हमसे अलग हो सकते हैं पर कलम में धार है। आपके विचारों का धन्यवाद।
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संजय भाई, मनीषजी, परमजीत जी, समीर भाईसाहब, संजीवजीः आपकी प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
रीतेश भाई, आपकी प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
बहुत ही अलग पर बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने ।
घुघूती बासूती
सुन्दर लिखा है अभिनव जी....जैसी यह दुनिया नजर आती है वैसी असल में है नहीं.. हाथी के दांत खाने के और है और दिखाने के और...
लिखते रहिये
नशे में डूबे हुए,
पलकें झपकाते हुए,
गालियाँ बकते हुए,
प्रगति से चिपकते हुए,
मेरे प्रगतिशील मित्र।
bahut achhaa
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