हम गुनहगार हों, चाहे बीमार हों,
चाहे लाचार हों, चाहे बेकार हों,
जो भी हों चाहे, जैसे भी हों दोस्तों,
साथ ऐसे रहें, जैसे परिवार हों,
कुछ नियम से बहे स्वस्थ आलोचना,
हो दिशा सूर्योन्मुख सकारात्मक,
व्यर्थ में जो करे बात विघटनमुखी,
उससे क्या तर्क हों, आर हों, पार हों,
हम पढें, हम लिखें, सबसे ऊँचा दिखें,
ज़ोर पूरा लगाकर, वहीं पर टिकें,
उसपे ये शर्त रखी है सरकार नें,
फैसले सब यहीं बीच मंझधार हों,
ये भरोसा है हमको जड़ों पर अभी,
हमको आंधी से ख़तरा नहीं है मगर,
ये ज़रूरी है सबके लिए जानना,
कब रहें बेखबर, कब ख़बरदार हों,
शब्द हल्के रहें, चाहे भारी रहें,
भावनाओं के संचार जारी रहें,
अच्छे शायर बनें न बनें दोस्तों,
अच्छा इंसान बनने का आधार हों,
महा लिख्खाड़
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साथ ऐसे रहें, जैसे परिवार हों
Apr 19, 2007
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4 प्रतिक्रियाएं:
अच्छी कविता और संदेश है, बधाई.
अच्छे शायर बनें न बनें दोस्तों,
अच्छा इंसान बनने का आधार हों,
अच्छा है!
आचार संहिता जैसी बात कह लें बन्धु; पर - 'यो यत श्रद्ध: स एव स:'
शब्द हल्के रहें, चाहे भारी रहें,
भावनाओं के संचार जारी रहें,
अच्छे शायर बनें न बनें दोस्तों,
अच्छा इंसान बनने का आधार हों,
बहुत सुंदर ....बधाई
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