तुलसी बाबा तुमने कैसे इतना बड़ा ग्रन्थ लिख डाला,
कैसे प्रभु राम के रस में डूबे, शब्द शब्द को ढाला,
कैसे भाषा चुनी, भाव कैसे बांधे, कैसे काग़ज़ पर,
कैसी कलम उठाई, कैसे बैठे थे, कैसे आसन पर,
किस प्रहर लिखा, कैसा भोजन, कैसा पानी तुम पीते थे,
कैसे थे वस्त्र तुम्हारे, तुम कैसे मित्रों में जीते थे?
बाबा बोले आ सपने में, "मुझको तो कुछ भी दिखा नहीं,
'श्री रामचंद्र की जय' के सिवा मैंने तो कुछ भी लिखा नहीं."
3 प्रतिक्रियाएं:
jay sriram
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
वाह ,विनम्रता के प्रतिमूर्ति तुलसी क्यों न कहें ऐसा ?
सहज भाव से लिख डाली थी तुलसी ने तो राम कथा,
भाव बिसारे हम शब्दों का अर्थ ढूढ़ते फिरते हैं ।
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