कुछ साल पहले न्यूयार्क में एक बड़ी संस्था द्वारा एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। भारत से भी कुछ कवि बुलाए गए। हम तब तक नौकरी के सिलसिले में सिएटल पहुँच चुके थे। आयोजक महोदय नें हमको भी फोन किया तथा कार्यक्रम में भागीदारी करने का निवेदन किया, दो दिन में हवाई टिकट भी हमारे पास पहुँच गए। तो कुल हिसाब ये कि हम भी अपनी टूटी फूटी कविताओं की गठरी लेकर, भारतीय परिधान धारण कर, तीन टाईम ज़ोन पार करते हुए, कवि सम्मेलन के सभागार में पहुँच गए। सभागार में ढेर सारे सजे संवरे सुंदर लोग कविताओं का आनंद लेने आ चुके थे। कवि भी तैयार थे। तभी आयोजक महोदय हमारे पास आए और बोले कि, "भाई अभिनवजी, आप बस लोगों को हंसा दीजिएगा, केवल चुटकुले और हंसी की बातें ही कीजिएगा। कृपया कोई गंभीर रचना मत सुनाईएगा, यहाँ कोई समझेगा नहीं।"
हमने उनसे कहा कि, "हम हास्य कविताएँ भी पढ़ेंगे तथा सामयिक गंभीर रचनाएँ भी। अभी मुंबई में ब्लास्ट हुए हैं जिसका सहारा लेकर, हमारे कवि परिवार के रत्न श्री श्याम ज्वालामुखी बैकुण्ठ लोक में श्री हरि को कविता सुनाने के लिए चले गए हैं। मेरी काव्य चेतना मुझे इस आतंकवाद पर कविता पढ़ने को कह रही है। तथा इस विषय पर कविता सुनकर लोग हंसेंगे नहीं, अपितु उनकी मुट्ठियाँ अवश्य भिंच जाएँगी।" खैर, राम जाने कि वे हमारी बात समझे या नहीं, परंतु फिर बढ़िया कवि सम्मेलन हुआ और श्रोताओं की अति उत्तम प्रतिक्रिया आई।
इस बात की चर्चा जब मैंने अपने एक अग्रज कवि से करी तो वे बोले कि आयोजक महोदय ठीक ही तो कह रहे थे। हास्य कवि सम्मेलन में कविता सुनने कौन जाता है। उनकी झोली में ऐसे अनेक संस्मरण थे जिसमें उन्हें चाह कर भी अपनी मनपसंद कविता न सुनाते हुए चुटकुले सुनाने के लिए कहा गया था। इधर जब सिनसिनाटी से रेनू गुप्ता जी नें हास्य कवि सम्मेलनों पर आलेख लिखने का अनुरोध किया, तब मन में यह उधेड़बुन चलने लगी कि क्या लिखूँ। एक बार को लगा कि हास्य कवि सम्मेलनों में प्रयोग होने वाले ग्लोबल चुटकुलों की एक लिस्ट तैयार कर दी जाए। पर यह काम अशोक चक्रधर जी अपनी पुस्तक मंच मचान में पहले ही कर चुके हैं। फिर लगा कि शुरू से आज तक के सभी हास्य कवियों की जीवनी लिखी जाए, पर उसमें ध्यान कविता के स्थान पर कवि के जीवन में घटने वाली घटनाओं पर भटक जाता। अतः यह दोनों विचार भविष्य हेतु स्थगित करते हुए हास्य कवि सम्मेलनों के विषय में मेरे जो नितांत व्यक्तिगत विचार हैं उन्हें लिखने का प्रयास कर रहा हूँ।
कविता में हास्य की परंपरा बहुत पुरानी है। रामचरितमानस में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जिनको पढ़ते पढ़ते स्वतः ही मुख पर मुस्कान छा जाती है तथा कई जगह तो ये मुस्कान हंसी में भी बदल जाती है। लक्ष्मण परशुराम संवाद हो चाहे अंगद रावण संवाद एक स्मित हास्य का बैकग्राउंड म्यूज़िक बजता ही रहता है। तुलसीदास जी के बाद के अनेक कवियों नें हास्य रचनाएँ लिखीं। गिरिधर कविराय की सहज कुण्डलिया सुनकर आप हंसे बिना नहीं रह सकते। भारतेन्दु के हास्य प्रहसन भी बड़े प्रसिद्ध हुए। यदि हम पिछले तीस चालीस वर्षों की बात करें तो इसमें अनेक हास्य कवियों नें अपनी लेखनी से आनंददायी छटा बिखेरी है।
मंचों पर प्रयुक्त होने वाली हास्य टिप्पणियों को अशोक चक्रधर नें अपनी पुस्तक मंच मचान में भली प्रकार से समेटा है. यदि कोई यही एक पुस्तक दो चार बार मन से पढ़ ले तो बिना किसी कविता के भी आधा एक घंटा मंच पर खड़ा होकर बोल सकता है तथा तालियों की गूँज सुन सकता है.
कवि सम्मेलनों के मंच पर हास्य रस को प्रतिष्ठित करने में काका हाथरसी का विशेष योगदान रहा है. काका की रचनाओं में जो मासूमियत होती थी वो श्रोताओं को खिलखिलाने पर मजबूर कर देती थी.
देवी जी कहने लगीं, कर घूँघट की आड़
हमको दिखलाए नहीं, तुमने कभी पहाड़
तुमने कभी पहाड़, हाय तकदीर हमारी
इससे तो अच्छा, मैं नर होती, तुम नारी
कहँ ‘काका’ कविराय, जोश तब हमको आया
मानचित्र भारत का लाकर उन्हें दिखाया
देखो इसमें ध्यान से, हल हो गया सवाल
यह शिमला, यह मसूरी, यह है नैनीताल
यह है नैनीताल, कहो घर बैठे-बैठे-
दिखला दिए पहाड़, बहादुर हैं हम कैसे ?
कहँ ‘काका’ कवि, चाय पिओ औ’ बिस्कुट कुतरो
पहाड़ क्या हैं, उतरो, चढ़ो, चढ़ो, फिर उतरो
हास्य कविता को कवि सम्मेलनों की लोकप्रियता के एक मापक के रूप में स्थापित किया "चार लाइना" सुना सुना कर, गंभीर मुख मुद्रा धरी सुरेन्द्र शर्मा नें. सुरेन्द्र शर्मा की कवितायेँ बिल्कुल सरल आम बोलचाल की भाषा में राजस्थान की महक समेटे हर ओर हास्य का प्रसार करती रहती है. इधर पिछले कुछ समय से सुरेन्द्र शर्मा अपनी गंभीर रचनायें भी मंच से पढने लगे हैं पर श्रोताओं की इच्छा सदा उनसे उनकी हास्य रचनायें सुनने की ही रही है.
कविवर ओमप्रकाश आदित्य जब हास्य को छंद में बंद कर मंच से पढ़ते हैं तो एक अलग अनुभूति होती है, जब अल्हड़ बीकानेरी अपनी सुरीली आवाज़ में हास्य रचना पढ़ते हैं तो वो सीधे दिल में उतर जाती है. माणिक वर्मा के व्यंग, प्रदीप चौबे के रंग, शैल चतुर्वेदी की चलती हुयी आँख, कैलाश गौतम जी की गंवई साख, हुल्लड़ के दुमदार दोहे, सुरेश अवस्थी के बच्चों से संवाद, सुरेन्द्र सुकुमार के वाद विवाद, के पी सक्सेना की ज़बरदस्त कविताई तथा सुरेन्द्र दुबे की कक्षा में पढ़ाई किए बिना हास्य कविता का अध्याय समाप्त नही हो सकता है.
इधर इंडियन लाफ्टर चैलेन्ज नमक प्रतियोगिता में भी हमारे कुछ हास्य कवियों नें अपनी प्रतिभा का लोहा सबसे मनवाया है. एहसान कुरैशी, गौरव शर्मा, प्रताप फौजदार नें अपनी चटपटी बातों से इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है. अशोक चक्रधर नें भी अपने कार्यक्रम वाह वाह के द्वारा कई हास्य कवियों और श्रोताओं के मध्य कड़ी बनने का काम किया है. टिपिकल हैदराबादी, दीपक गुप्ता, मधुमोहिनी उपाध्याय, प्रभा किरण जैन, नीरज पुरी, ओम व्यास समेत अनेक प्रतिभाओं को इस कार्यक्रम में सुनना एक अच्छा अनुभव रहा.
युवा पीढ़ी में अनेक अच्छे हास्य कवि अपनी रचनाओं की खुशबू से मंचों को महका रहे हैं. दिल्ली में रहने वाले प्रवीण शुक्ला जब अपनी बोतल में से जिन्न को निकाल कर उससे भ्रष्टाचार दूर करने को कहते हैं तब हास्य और व्यंग की एक सुंदर रचना हमारे सामने आती है. दिल्ली के ही सुनील जोगी जब गा गा कर अपनी हास्य कवितायेँ पढ़ते हैं तो माहौल खुशनुमा हो जाता है. गजेन्द्र सोलंकी (दिल्ली), राजेश चेतन (दिल्ली), रसिक गुप्ता (दिल्ली), सरदार मंजीत सिंह, अरुण जेमिनी (दिल्ली), महेंद्र अजनबी (दिल्ली), दिनेश बावरा (मुम्बई), हरजीत सिंह तुकतुक (मुम्बई), लखनऊ में रहने वाले सर्वेश अस्थाना, सूर्य कुमार पाण्डेय, जमना प्रसाद उपाध्याय (फैजाबाद), महेश दुबे (मुम्बई), देवेन्द्र शुक्ला (कैलिफोर्निया), बिन्देश्वरी अग्रवाल (न्यूयार्क), राकेश खंडेलवाल (वॉशिंगटन डी सी), अर्चना पांडा (फ्रीमोंट), नीरज त्रिपाठी (हैदराबाद), डा आदित्य शुक्ला (बंगलौर), दीपक गुप्ता (फरीदपुर), मधुप पाण्डेय (नागपुर),सुनीता चोटिया (दिल्ली), निखिल आनंद गिरी (दिल्ली) भी बढ़िया हास्य कवितायेँ लिख रहे हैं तथा मंच पर पूरी ठसक के साथ पढ़ रहे हैं. बात चूंकि कवि सम्मेलनों में हास्य रस की रचनाओं की है अतः कुछ नाम जो स्वतः मन में आए लिख दिए हैं. ऐसे अनेक नाम हैं जो मेरी अल्पज्ञता एवं अज्ञान के कारण इस सूची में नहीं हैं परन्तु जो की बहुत श्रेष्ठ और सच्चे हास्य कवि हैं.
यह कवि की ज़िम्मेदारी है कि वह किस प्रकार श्रोताओं के मानस में प्रवेश करे और आनंद सागर में सबको गोते लगवाए. लेख के अंत में उस नए हास्य कवि कि कुछ पंक्तियाँ प्रेषित कर रहा हूँ जिसने ये लेख लिखा है.
लेना हो जो बूँद बूँद स्वाद तुम्हें भोजन का,
भिंडी तन्तु दांत में भी फँसना ज़रूरी है,
इंटरनेट पे ही हुए प्रेमियों के फंदे फिट,
प्रेमिका कि गली में क्या बसना ज़रूरी है,
नीचे को सरकती हो बार बार पतलून,
नाड़ा हो पाजामे में तो कसना ज़रूरी है,
अभिनव शुक्ल कहें रक्त के बढ़ाने हेतु,
दिल खोल आदमी का हँसना ज़रूरी है,
---------------------------------------------
कवि सम्मेलन से संबंधित कुछ जालघरों के पते;
१. hasyakavisammelan.com
२. kavisammelan.org
३. kavisangam.com
४. kaviabhinav.com
महा लिख्खाड़
-
सियार6 days ago
-
मैं हूं इक लम्हा2 weeks ago
-
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो4 weeks ago
-
-
बाग में टपके आम बीनने का मजा4 months ago
-
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है1 year ago
-
पितृ पक्ष1 year ago
-
-
व्यतीत4 years ago
-
Demonetization and Mobile Banking7 years ago
-
मछली का नाम मार्गरेटा..!!9 years ago
नाप तोल
1 Aug2022 - 240
1 Jul2022 - 246
1 Jun2022 - 242
1 Jan 2022 - 237
1 Jun 2021 - 230
1 Jan 2021 - 221
1 Jun 2020 - 256
हास्य कवि सम्मेलन में कविता सुनने कौन जाता है
Mar 10, 2008प्रेषक: अभिनव @ 3/10/2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 प्रतिक्रियाएं:
सही लिखा है भाई...आज के बोझिल समय मे हास्य कविता बहुत जरूरी है
very correct sir
अभिनव चुपचाप से बिन बताए ही भग लिये और अब यहां पर पकड़ में आ रहे हो । हास्य तो वैसे भ्ी कानव मन की आज की सबसे बड़ी जरूरत है मैं स्वयं भी जब अवसाद में होता हूं तो वैलकम, खोसला का घोंसला, भेजा फ्राय जाने भी दो यारों जैसी फिलमें देखने बैठ जाता हूं इससे अवसाद का तात्कालिक उपचार ये हो जाता है कि वो आपको उतना नुकसान नहीं पहुचा पाता जितना खाली बैठने पर पहुचा देता । हास्य तो हमारे जीवन में हमेशा होना ही चाहिये क्योंकि वहीं हमें उबार लेता है ।
अभिनव भाई नमस्कार
बहुत अच्छे लेख के लिए बधाई स्वीकार करें
कवि दीपक गुप्ता -
www.kavideepakgupta.com
अभिनव - होली की शुभ कामनाएं - सस्नेह - मनीष
इतना बड़ा लेख पढ़ने में बड़ी कोफ्त होती है लेकिन आप का लेख पूरा का पूरा निगल गया...मजा आ गया...लेकिन हास्य भले हि कितना चल ले बिना कविता अधूरा है.. और अच्छी कविता सभी पसंद करते हैं.. यह तो जो बिना अच्छा लिखे सस्ते में निपताना चाह्ते हैं शायद उनकी दुकानदारी है..
aapne sahi likha hai. Ashok Swtantra, Delhi
Post a Comment