जाने वाला वर्ष सुनहरी स्मृतियाँ स्पर्श करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे,
वर्ष नया क्या सिर्फ कलैण्डर की तारीख नई सी है,
या जीवन के प्लेटफार्म से कोई रेल गई सी है,
कितने मित्र राह में चलते हुए नित्य बन जाते हैं,
उनमें से कितने ही तो सुख दुख में साथ निभाते हैं,
किंतु मित्रता की परिभाषा में परिवर्तन देखा है,
दूरी को कम ज़्यादा करती कोई नियति रेखा है,
मेरी अभिलाषा है जितने लोग दूर जा बैठे हैं,
मैं उन सबके पास कहीं जाऊँ जाकर के मुस्काऊँ,
और कहूँ नववर्ष तुम्हारे जीवन का उत्कर्ष करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे,
सात के साथ ज़रा देखो तो कितने साथी छूट गए,
कितने रिश्ते नए बने और कितने रिश्ते टूट गए,
माता सरस्वती नें अपने प्रिय पुत्र को मांग लिया,
श्री बृजेन्द्र अवस्थी के संग एक युग नें प्रस्थान किया,
जिनकी वाणी से पाए थे भजनों नें आयाम नए,
श्री हरि ओम शरण भी अंतर्ध्यान राम के धाम गए,
आदर्शों की कथा में अनुपम पृष्ठ जोड़ कर चले गए,
कमलेश्वर, त्रिलोचन, निर्मल कलम तोड़ कर चले गए,
जगमग जगमग गए हैं सूरज कई धरा के आंगन से,
आठ में गहरे अंधकार से जग मिलकर संघर्ष करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे,
गली गली में सजती दिखती अपराधों की झाँकी है,
आतंकी आंधी की जड़ में कितनी ताकत बाकी है,
नफरत के, कटुता के हामी कितने ऊँचे पर पर हैं,
कितने अणुबम लगे हुए न जाने किस सरहद पर हैं,
दिल रोता है जब नगरों में रोज़ धमाके होते हैं,
और धमाकों पर घर में ही खूब ठहाके होते हैं,
बिके हुए टीवी चैनल ख़बरों के दाम लगाते हैं,
और इलाके के गुण्डे सत्ता के जाम लगाते हैं,
ऐसे में जब कद के मापक बस विलास हो बैठे हैं,
जिन पथराई आंखों के सपने उदास हो बैठे हैं,
उन आंखों में भी सच्चाई का थोड़ा सा हर्ष भरे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।
महा लिख्खाड़
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२००८ - प्लेटफार्म पर आने वाला है
Dec 31, 2007प्रेषक: अभिनव @ 12/31/2007
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12 प्रतिक्रियाएं:
बहुत सही विचारों को प्रस्तुत करती आप की रचना तारीफ के काबिल है।सुन्दर रचना है और आज की सच्चाई को बयान करती है।
दिल रोता है जब नगरों में रोज़ धमाके होते हैं,
और धमाकों पर घर में ही खूब ठहाके होते हैं,
बिके हुए टीवी चैनल ख़बरों के दाम लगाते हैं,
और इलाके के गुण्डे सत्ता के जाम लगाते हैं,
ऐसे में जब कद के मापक बस विलास हो बैठे हैं,
जिन पथराई आंखों के सपने उदास हो बैठे हैं,
उन आंखों में भी सच्चाई का थोड़ा सा हर्ष भरे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।
बहुत बढ़िया. नववर्ष की आपको ढेरो शुभकामना
बहुत अच्छी है, दीप्ती और तुम्हे नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
उन आंखों में भी सच्चाई का थोड़ा सा हर्ष भरे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।
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सच है - नैराश्य को उखाड़ फैंकें!
नव वर्ष मंगलमय हो मित्र।
बहुत सुंदर अभिनव भाई...
नये साल की शुभकामनायें...
बहुत सुन्दर
आशा करता हूँ की मैं उन मित्रों में से नहीं जो की साथ छोड़ बैठे हैं :-)
नए साल की शुभकामनाएं आपको भी।
-- Lavanya & Family
A thought provoking poem. Congrats.
Mahesh Chandra Dewedy, Lucknow
स्मृतियों के सोनहरे पल नए वर्ष में संजीवित हों
और पुराने की यादों में छुपे हुए आयाम खुलें
रातों का हर देखा सपना दिन के साथ मूर्तिमय हौले
पल संध्या के दोपहरी के खुली धुप के साथ धुलें
Beautiful Poem Abhinav!
ati sundar, abhinav. nayaa saal mubaarak ho.
laxmi n gupta
nice piece of poetry Abhinav.
आशा करता हूँ कि ये वर्ष एक नवीन चेतना और उल्लास का संचार करेगा |
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