अभी अभी पता चला,
समर्थन कर रहे हैं राजनीतिक दल,
टिकट देने को तैयार बैठे हैं,
मास्टर दीनानाथ को नहीं,
इकबाल कास्कर को,
दाऊद का भाई होने से कोई बुरा नहीं हो जाता है,
वह शायद मुस्लिम लीग के साथ जाए,
बनातवाला कह रहे थे,
शिव सैनिक गुस्सा हो रहे हैं,
वैलेंटाइन डे का मामला होता तो अभी झपड़िया देते,
नौजवान प्रेमियों को,
या फिर लठिया देते यूपी बिहार की ट्रेन से उतरे,
भैया लोगों को,
पर ये ज़रा टेढ़ी खीर है,
इसलिए बस गुस्सा रहे हैं,
पहले मैं सोचता था कि शिव सैनिक,
अपने कैलाशपति शिवजी के सैनिक हैं,
बाद में पता चला छत्रपति शिवाजी के हैं,
फिर समझ में आया कि सैनिक ही नहीं हैं,
कुछ चीज़ों का पता धीरे धीरे चलता है,
कोई बड़ी बात नहीं है कि कल,
हमारा अगला प्रधानमंत्री इकबाल कास्कर हो,
एक बात तय है,
तब शायद हमारे पाकिस्तान से संबंध सुधर जाएँ,
अभी तो खैर,
हर तरफ सबकुछ ही गोल माल चल रहा है,
संजय बड़ा मासूम है, बच्चन किसान है,
सच बात सिर्फ इतनी है, भारत महान है।
समाचार यहाँ देखें।
हमारा अगला प्रधानमंत्री - इकबाल कास्कर
Jun 27, 2007प्रेषक: अभिनव @ 6/27/2007 5 प्रतिक्रियाएं
अभिव्यक्ति पर व्यंग्य - अमलतास अर्थात और कुछ चित्र
Jun 20, 2007इधर अभिव्यक्ति पर हमारा एक व्यंग्य छपा है। वैसे हमको व्यंग्य लिखने का शहऊर नहीं है, पर फिर भी ऊट पटांग कुछ लिख दिया था, यदि थोड़ा चटना चाहें तो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।
यहाँ सिएटल के पास एक जगह है क्रेटर लेक। इधर अपने कुछ मित्रों के साथ वहाँ जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ पहुँच कर ऐसा लगा मानसरोवर शायद ऐसा ही रहा होगा। कुछ चित्र नीचे प्रेषित कर रहे हूँ।
हरी हरी वसुंधरा कि नीला नीला ये गगन, जैसे बादलों की पालकी उठा रहा पवन,दिशाएँ देखो रंग भरी, चमक रहीं उमंग भरी,ये किसने फूल फूल पर किया सिंगार है,
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार..., ये कौन चित्रकार है....
प्रेषक: अभिनव @ 6/20/2007 6 प्रतिक्रियाएं
सुनिए और पढ़िए - हम भी वापस जाएँगे
Jun 18, 2007प्रेषक: अभिनव @ 6/18/2007 6 प्रतिक्रियाएं
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सुनिए और पढ़िए - गाली गलौज करने की अब छूट लीजिए
Jun 15, 2007प्रेषक: अभिनव @ 6/15/2007 9 प्रतिक्रियाएं
सुनिए और पढ़िए - मृत्यु गीत
Jun 11, 2007लोकप्रिय गीतकार गोपालदास नीरज जी के एक गीत से प्रेरित होकर यह रचना लिखी गई।
प्रेषक: अभिनव @ 6/11/2007 3 प्रतिक्रियाएं
Labels: कविताएं
एक हास्य कविता - दाढ़ी
Jun 4, 2007भारत के ऋषि मुनियों नें पाला था शान से,
जगमग थी ज्ञानियों पे दमकते गुमान से,
नानक से औ कबीर से तीरथ से धाम से,
पहचान जिसकी होती थी साधू के नाम से,
दे सकती थी जो श्राप ज़रा सी ही भूल पर,
सूरजमुखी की पंखुडी ज्यों आधे फूल पर,
मुखड़े पे जो होती थी बड़प्पन की निशानी,
केशों की सहेली खिले गालों की जवानी,
दिन रात लोग करते थे मेहनत बड़ी गाढ़ी,
तब जाके कहीं उगती थी इस चेहरे दाढ़ी,
दाढ़ी जो लहरती थी तो तलवार सी लगती,
हो शांत तो व्यक्तित्व के विस्तार सी लगती,
दाढ़ी तो दीन दुनिया से रहती थी बेख़बर,
करते सलाम लोग थे पर इसको देख कर,
दाढ़ी में हैं सिमटे हुए कुछ भेद भी गहरे,
सूरत पे लगा देती है ये रंग के पहरे,
दाढ़ी सफेद रंग की सम्मान पाएगी,
भूरी जो हुई घूर घूर घूरी जाएगी,
दाढ़ी जो हुई काली तो कमाल करेगी,
मेंहदी रची तो रंग लाल लाल करेगी,
दाढ़ी का रंग एक सा है छाँव धूप में,
सबको ही बांध लेती है ये अपने रूप में,
दाढ़ी के बिना चेहरा बियाबान सा लगे,
भूसी से बाहर आए हुए धान सा लगे,
दाढ़ी से रौब बढ़ता है ज़ुल्फों के फेर का,
दाढ़ी तो एक गहना है बबरीले शेर का,
चेहरे पे बाल दाढ़ी के जब आ के तने थे,
लिंकन भी तभी आदमी महान बने थे,
खामोश होके घुलती थी मौसम में खु़मारी,
शहनाई पे जब झूमती थी खान की दाढ़ी,
'सत श्री अकाल' बोल के चलती थी कटारी,
लाखों को बचा लेती थी इक सिंह की दाढ़ी,
मख़मल सरीख़ी थी गुरु रविन्द्र की दाढ़ी,
दर्शन में डूब खिली थी अरविंद की दाढ़ी,
दिल खोल हंसाती थी बहुत काका की दाढ़ी,
लगती थी खतरनाक बड़ी राका ही दाढ़ी,
गांधीजी हमारे भी यदि दाढ़ी उगाते,
तो राष्ट्रपिता की जगह जगदादा कहाते,
ख़बरें भी छपती रहती हैं दाढ़ी के शोर की,
तिनका छिपा है आज भी दाढ़ी में चोर की,
उगती है किसी किसी के ही पेट में दाढ़ी,
पर आज बिक रही बड़े कम रेट में दाढ़ी,
सदियों की मोहब्बत का ये अंजाम दिया है,
आतंकियों नें दाढ़ी को बदनाम किया है,
करने को हो जो बाद में वो सोच लीजिए,
पहले पकड़ के इनकी दाढ़ी नोच लीजिए,
स्पाइस ओल्ड बेच रही टीवी पे नारी,
दाढ़ी की प्रजाति हो है ख़तरा बड़ा भारी,
गुम्मे पे टिका के कहीं एसी में बिठा के,
तारों की मशीनों से या कैंची को उठा के,
पैसा कमा रहे हैं जो दाढ़ी की कटिंग में,
शामिल हैं वो संसार की मस्तिष्क शटिंग में,
ब्रश क्रीम फिटकरी की गाडी़ बढ़ाइए,
फिर शान से संसार में दाढ़ी बढ़ाइए,
मैं आज कह रहा हूँ कल ये दुनिया कहेगी,
दाढ़ी महान थी, महान है, और रहेगी।
प्रेषक: अभिनव @ 6/04/2007 17 प्रतिक्रियाएं
Labels: पाडकास्ट, हास्य कविता