दिल्ली में दिवाली पे मचाया हाहाकार,
होली पे भी खून का दिया है उपहार,
धरती के नयनों में आंसुओं की धार,
कैसी ये जिहाद और कैसा है ये ज्वार,
जहाँ तुलसी ने बैठ ध्यान किया था,
रामचन्द्र जी का यशगान किया था,
हनुमान जी से वरदान लिया था,
मानस का अमृत दान किया था,
उसी पुण्य पावन धरा के खण्ड पर,
असुरों नें आकर किया है अत्याचार,
आत्मा से उठती है आह बार बार,
कैसी ये जिहाद और कैसा है ये ज्वार,
पतन के गर्त में बढ़ते रहें,
नफरतों के पर्वतों पे चढ़ते रहें,
हिंदू और मुस्लिम लड़ते रहें,
कोई चाहता है ये झगड़ते रहें,
रोटी पानी बिजली रोज़गार ना कहें,
बोलें शमशीर तिरशूल तलवार,
भूल जाएँ सारी तहज़ीब और प्यार,
कैसी ये जिहाद और कैसा है ये ज्वार,
उग्रवादियों का कोई धर्म नहीं है,
उनके हृदय में कोई मर्म नहीं है,
इनको खुदा से भी तो शर्म नहीं है,
दुष्टों का कत्ल नीच कर्म नहीं है,
आप बैठे रहिए कि राम आएगा,
रावण को करने तमाम आएगा,
घंटियां बजा के सुबह शाम आएगा,
टीवी चैनलों पर उसका नाम आएगा,
इन असुरों के संहार के लिए,
स्वयं का ही करना पड़ेगा विस्तार,
जय घोष तभी गूंजेगा द्वार द्वार,
रामजी की विजय और रावण की हार,
भोली जनता का उपहास देखिए,
खण्ड खण्ड होता विश्वास देखिए,
चोर और सिपाही आस पास देखिए,
भेड़िये को खाता हुआ घास देखिए,
दिल की नज़र ज़रा खोलिए हुज़ूर,
सूरज को रोशनी का दास देखिए,
मार काट वाले इस नए दौर में,
नदियों में सागर की प्यास देखिए,
काश ऐसा हो सुखी नदिया ही रहे,
प्यार वाले झरने को लेकर बहे,
धरती लुटाए हम सब पे दुलार,
रामजी की विजय और रावण की हार,
आदमी को आदमी से काट रहे हैं,
जात पात में जो देश बांट रहे हैं,
बाँट करके मलाई चाट रहे हैं,
राज करते हैं ठाठ बाट रहे हैं,
ऐसी कुप्रथाओं के हैं दोषी वे सभी,
जिनके भी चेहरे सपाट रहे हैं,
और हम लेकर मशाल हाथ में,
कलम से खाइयों को पाट रहे हैं,
ज़ुल्मों को चुपचाप कोई ना सहे,
जीवन में कोई भी ना पिछड़ा रहे,
सब जन गण मन मिल ये कहे,
जय जय जय जय जय जय हे,
रामजी की विजय और रामजी की जय।
महा लिख्खाड़
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कैसी ये जिहाद और कैसा है ये ज्वार
Mar 10, 2006
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3 प्रतिक्रियाएं:
अभिनव जी, बहुत ही सामयिक और उत्कृष्ट कविता है। आज मज़हब और जेहाद के नाम पर जो हो रहा है, उसकी पीड़ा कविता के हर शब्द से टपक रही है।
क्या बात है..बहुत सुंदर...जारी रखें...
समीर लाल
Rama said....
Abhinav ki abhinav anubhUti....
Bahut sundar abhivyakti...Bahut bahut shubh-kamnaayeM.
Dr. Rama Dwivedi
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