वसंत आया

Feb 12, 2017

वसंत आया तो उसके आते ही फ़ेसबुक पर उसका ज़ोरदार स्वागत होने लगा। मेरे प्यारे प्यारे सहेले - सहेलियाँ अपनी अपनी वाल पर ऋतुराज की उपाधि को जस्टिफाई करने लगे। और इधर ट्रंप बाबू भी अपने द्वारा बनाई जाने वाली वॉल को बसंती रंग में रंगने पर सहमत हो गए। ट्रंप के विरोधी भी बसंती चोला धारण कर सड़कों पर उतर पड़े। टीवी चैनलों के ढपोरसंख पत्रकार चीख़ चिल्ला कर जब थक गए, तब बसंत पर होने वाले कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग कर वासंती अनुभव करने लगे। धार्मिक एकता के बचे खुचे पैरोकार अमीर खुसरो का नाम ले सबको बरगलाने में तत्पर हो गए कि बसंत हिंदू मुस्लिम एकता के लिए आया है। वामपंथ की फिसलौंध भरी गलियों के वासी, बसंत को मिली ऋतुराज की उपाधि को अन्य ऋतुओं का षड्यंत्र बताते हुए इसके विरोध में अपने पुरुस्कार लौटा कर कृतकृत्य होने लगे। कामदेव इस सोच में व्यस्त हो गए कि इस बसंत कौन से प्रोडक्ट द्वारा अपना प्रचार बढ़ाया जाए। चिड़िया सरसों के खेत में उड़ते हुए भोजन हेतु केंचुओं का शिकार करने लगी। माँ शारदा के भक्त पंचम स्वर में सरस्वती वंदना गाने लगे। ऐसे में अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया राज्य के मध्य बसे फोलसम नगर में वास करने वाले एक नितांत मासूम से भोले भाले प्रवासी भारतीय ने फ़ेसबुक पर बसंत के स्वागत में बनने वाले मीठे पीले ड्राई फ़्रूट एवं नरियर मिक्स चावलों का वर्णन पढ़ अपनी पत्नी से उन चावलों को पकाने हेतु आवेदन दिया। पत्नी ने भी तुरंत ऐसी किसी भी वस्तु के संसार में पकने की बात से अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हुए उसकी रेसिपी न जानने की बात करते हुए आवेदन निरस्त कर दिया। इसके उपरांत बड़ी मेहनत और अनेक क्लिक के उपरांत वसंत के पीले चावलों की विधि अंतर्जाल पर ढूँढ कर पति ने स्वयं उन्हें बना कर अपना वसंत मनाया। ज्ञानीजन ठीक ही कह गए हैं कि वसंत आता नहीं उसे पकड़ के लाना पड़ता है। तभी एक नन्हें देवदूत को वाट्स अप पर निम्न कविता पढ़ते देखा तो लगा सचमुच बसंत आ गया।
ओढ़ दुसाला चंदा मामा, ठिठुर ठिठुर कर भए पजामा,
मौसम बदलावा जाई, बसंत का लावा जाई,
मामा का बचावा जाई, कविता रचावा जाई,
बढ़ियाँ से गावा जाई, नई नई दुल्हिन लावा जाई,
दुल्हिन का समुझावा जाई, चावल बनवावा जाई,
हम तुम खावा जाई, केहुक न खेवावा जाई।

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