सियैटल में पतझड़ का अपना अलग ही रंग होता है. हलकी हलकी बारिश निरंतर चलती रहती है, आसमान पर मटमैले बादल छाये रहते हैं आर धरती पर असंख्य पत्र.
लाल, हरे, पीले, नारंगी, भूरे,
काले हैं,
पत्र वृक्ष से अब अनुमतियाँ लेने वाले हैं,
मधुर सुवासित पवन का झोंका मस्त मलंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
पत्र वृक्ष से अब अनुमतियाँ लेने वाले हैं,
मधुर सुवासित पवन का झोंका मस्त मलंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
जैसे दुल्हन कोई सासुरे अपने जाती हो,
पाँव महावर सजा हो, बिंदिया गीत सुनाती हो,
अक्षत, रोली, चन्दन, हल्दी संग विदाई हो,
पाँव महावर सजा हो, बिंदिया गीत सुनाती हो,
अक्षत, रोली, चन्दन, हल्दी संग विदाई हो,
चार कहारों नें डोली कांधों पे उठाई हो,
ऐसी सजधज, देख जिसे सजधज को विस्मय हो,
मन के भीतर भीतर कुछ अंजाना सा भय हो,
ऐसी सजधज, देख जिसे सजधज को विस्मय हो,
मन के भीतर भीतर कुछ अंजाना सा भय हो,
लाज-शर्म, मुस्कान, कंपकंपी, ताल अभंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
स्वर्ग धरा पर उतरा ऋतुओं की अंगड़ाई है,
जीवन का यह चक्र अनोखा, मिलन जुदाई है,
मौन खड़े हैं वृक्ष बांह फैलाए बाबुल से,
बोल नहीं पाते हैं पर लगते हैं आकुल से,
मौन खड़े हैं वृक्ष बांह फैलाए बाबुल से,
बोल नहीं पाते हैं पर लगते हैं आकुल से,
चिड़िया तिनकों के घर से बाहर आ बैठी है,
सुनो ध्यान से, गीत विदा के गाती रहती है,
अम्बर से भी बरस रही आशीष की गंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
अम्बर से भी बरस रही आशीष की गंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
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