ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है

Nov 18, 2008














ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है,
ये रक्त किसका बहा हुआ है,
नगर भी चुप है,
डगर भी चुप है,
ये सत्य है,
या,
ये कल्पना है,

न जाने कैसा है प्रश्न जीवन,
सब उत्तरों में भटक रहे हैं,
ये दृश्य कैसे हैं आज बिखरे,
सभी नयन में खटक रहे हैं,

न कोई पुस्तक न कोई वाणी,
ह्रदय की पीड़ा मिटा रही है,
न कोई जल न कोई कहानी,
गरल क्षुधा को बुझा रही है,

समस्त भूखंड खंड खंडित,
उपहास धरती का कर रहे हैं,
ये विष को अमृत बताने वाले,
क्यों आज दर्पण से डर रहे हैं,

वो जगमगाते हुए भवन को,
ये झोंपड़ी क्यों न दिख रही है,
ये पांच परपंच त्याग कर के,
कलम न जाने क्या लिख रही है,

ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है,
ये रक्त किसका बहा हुआ है.

1 प्रतिक्रियाएं:

ये प्रश्न तुमने उठाया है जो
नहीं नया है, है ये पुरातन
न इसका उत्तर मिला था पहले
न आज पायेगा मन का आँगन

वही दु:शासन है, भीष्म वह ही
औ’ चुप हो शासक खड़ा हुआ है
जो जान लो तुम, हमें बताना
ये रक्त किसका बहा हुआ है