ज़रा हट कर है, 'इंडियन लाफ्टर' देखिये,
आपसे क्या मतलब, आप बम फेंकिये,
मुंबई को बना दीजिये बमबई,
अरे, ये बगल से किसकी गोली गई,
किसने चलाई, क्यों चलाई, किस पर चलाई,
अमां छोडिये ये लीजिये दूध में एक्स्ट्रा मलाई,
सुनिए, लता क्या सुंदर गाती है,
ये किसके रोने की आवाज़ आती है,
हम लगातार पाँच मैच जीते हैं,
जो अपाहिज हुए हैं उनके दिन कैसे बीते हैं,
लगता है होटल में आग लग गई है,
बहुत सर्दी हो रही है हाथ सेंकिए,
'इंडियन लाफ्टर' देखिये.
'इंडियन लाफ्टर' देखिये
Nov 27, 2008प्रेषक: अभिनव @ 11/27/2008 4 प्रतिक्रियाएं
Labels: कविताएं
अथर्व, तुम्हारा स्वागत है
Nov 24, 2008अथर्व, तुम्हारा स्वागत है,
आओ आकर जग को अपनी खुशबू से महकाओ तुम,
मानवता के बाग़ में खिलते हुए पुष्प बन जाओ तुम,
चित्र बनाओ बदल पर जीवन की सुन्दरताई के,
रंग भरो कोमलता के, दृढ़ता के औ' सच्चाई के,
सदा प्रतिष्ठा जनित तुम्हारी कीर्ति जगत में व्याप्त रहे,
जो देवों को भी दुर्लभ स्थान वो तुमको प्राप्त रहे,
हंसो और मुस्काओ खिलकर, खुलकर सबका मान करो,
कभी घृणा न करो किसी से प्रेम, पुण्य, तप दान करो,
देखो पलक बिछाए बैठी दुनिया तुमसे बोल रही,
अथर्व तुम्हारा स्वागत है,
न तो मन मन में पीड़ा थी न तन तन में तबाही थी,
ये दुनिया वैसी तो न है जैसी हमनें चाही थी,
अभी बहुत से पोखर ताल शिकारे सूखे बैठे हैं,
अभी बहुत से सूरज चाँद सितारे भूखे बैठे हैं,
अभी बहुत सी नदियों में ज़हरीली नफरत बहती है,
रहती है खामोश मगर ये धरा बहुत कुछ कहती है,
देखो तुम भी देखो कट्टरता की शाखा बढ़ी हुयी,
और तुम्हारे पिता की पीढी हाथ झाड़ कर खड़ी हुयी,
शब्दों की थाली से तुमको तिलक लगाने को आतुर,
अथर्व तुम्हारा स्वागत है,
रहो कहीं भी किसी देश में कोई भी भाषा बोलो तुम,
किसी धर्म को चुनो किसी जीवन साथी के हो लो तुम,
कोई भी व्यवसाय तुम्हारा हो कोई भी भोजन हो,
किंतु हृदय में पावनता हो शुभ संकल्प प्रयोजन हो,
देश तुम्हारा भेदभाव न करे न्याय का दाता हो,
भाषा जिसमें झूम झूम कर जीवन गीत सुनाता हो,
धर्म हो ऐसा जो सब धर्मों का समुचित सम्मान करे,
जीवन साथी जीवन भर जीवन में सुख संचार करे,
व्यवसाय हो सबके हित में भोजन सरल सरस सादा,
अथर्व तुम्हारा स्वागत है.
प्रेषक: अभिनव @ 11/24/2008 6 प्रतिक्रियाएं
ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है
Nov 18, 2008
ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है,
ये रक्त किसका बहा हुआ है,
नगर भी चुप है,
डगर भी चुप है,
ये सत्य है,
या,
ये कल्पना है,
न जाने कैसा है प्रश्न जीवन,
सब उत्तरों में भटक रहे हैं,
ये दृश्य कैसे हैं आज बिखरे,
सभी नयन में खटक रहे हैं,
न कोई पुस्तक न कोई वाणी,
ह्रदय की पीड़ा मिटा रही है,
न कोई जल न कोई कहानी,
गरल क्षुधा को बुझा रही है,
समस्त भूखंड खंड खंडित,
उपहास धरती का कर रहे हैं,
ये विष को अमृत बताने वाले,
क्यों आज दर्पण से डर रहे हैं,
वो जगमगाते हुए भवन को,
ये झोंपड़ी क्यों न दिख रही है,
ये पांच परपंच त्याग कर के,
कलम न जाने क्या लिख रही है,
ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है,
ये रक्त किसका बहा हुआ है.
प्रेषक: अभिनव @ 11/18/2008 1 प्रतिक्रियाएं
Labels: कविताएं
ये तोड़ेंगे भारत को - पाकिस्तान के स्वप्न
Nov 17, 2008ज़ाइद हमीद नमक ये पाकिस्तानी सज्जन खूब बक बक कर रहे हैं. भारत कैसे टूटेगा और हमारे देश की क्या बड़ी समस्यायें हैं ये हमसे अधिक इनको पता हैं. आप भी सुनिए और मज़ा लीजिये.
प्रेषक: अभिनव @ 11/17/2008 2 प्रतिक्रियाएं