मुट्ठियाँ भींचे हुए बस देखते हैं हम

Jul 26, 2008













सूचना आई फटा है आर्याव्रत में बम,
मुट्ठियाँ भींचे हुए बस देखते हैं हम,

नखलऊ, जैपूर, बंगलूरु, हईद्राबाद,
मुंबई, काशी, नै दिल्ली दम दमा दमदम,

बात ये पहुँची जब अपने हुक्मरानों तक,
हंस के बोले ग्लास में डालो ज़रा सी रम,

अब नियमित रूप से मौसम ख़बर के बाद,
बम की खबरें आ रही हैं देख लो प्रियतम,

आदमीयत हो रही है आदमी में कम,
पढ़ के लिख के बन गए हैं पूरे बेशरअम.

फर्क पड़ता ही नहीं कोई किसी को अब,
दुःख रहा फिर दिल हमारा आँख है क्यों नम,

हिंदू मुस्लिम लड़ मरें तो कौन खुश होगा,
सोच कर देखो मेरे भाई मेरे हमदम.

8 प्रतिक्रियाएं:

Anil Kumar said...

http://in.youtube.com/watch?v=5KRb2f9WUAk

बहुत दिनों के बाद आया हूं ब्‍लाग पर और आते ही आपको देखा अच्‍छा लगा । आशा है आपने इस ग़ज़ल को मीटर पर कस के ही लगाया होगा ब्‍लाग पर ।

Sajeev said...

सही चिंता अभिनव भाई

बहुत बढिया लिखा है-


बात ये पहुँची जब अपने हुक्मरानों तक,
हंस के बोले ग्लास में डालो ज़रा सी रम,

जरुर पढें दिशाएं पर क्लिक करें ।

बात ये पहुँची जब अपने हुक्मरानों तक,
हंस के बोले ग्लास में डालो ज़रा सी रम,

अब नियमित रूप से मौसम ख़बर के बाद,
बम की खबरें आ रही हैं देख लो प्रियतम,
bahut khoob.....

शोभा said...

फर्क पड़ता ही नहीं कोई किसी को अब,
दुःख रहा फिर दिल हमारा आँख है क्यों नम,

हिंदू मुस्लिम लड़ मरें तो कौन खुश होगा,
सोच कर देखो मेरे भाई मेरे हमदम.
बहुत सुन्दर।

Akhil Agarwal said...

Good one Abhinav!

Akhil Agarwal said...

Very nice Abhinav!