बात प्रेम वाली सभी को सुहाती है,
किंतु जब रक्त वाली आँधी आती है,
तब उसी प्रेम की सुरक्षा के लिए,
रणचण्डी दुर्गा भवानी आती है,
प्रेम तो है उड़ते परिंदों के लिए,
प्रेम नहीं वहशी दरिंदों के लिए,
गोलियों से देना उन्हें भून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए,
शत्रुओं को ढूँढ पाना खेल नहीं है,
उनकी कुटिलता का मेल नहीं है,
चेहरे पर चेहरा लगाए हुए हैं,
देश की रगों में जो समाए हुए हैं,
उनके सफल उपचार के लिए,
असुरों के पूर्ण संहार के लिए,
आग बरसाता मानसून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए,
शाम को चले थे घर जाने के लिए,
मुन्ना मुन्नी गोद में खिलाने के लिए,
वो सदा के लिए आग में ही खो गए,
सुनने सुनाने की कहानी हो गए,
उनके परिजनों का ध्यान कीजिए,
मत सिर्फ झूठे अनुदान दीजिए,
आत्मा को थोड़ा सा सुकून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए।
रुपए ना मान ना सम्मान चाहिए,
हमको खु़दा ना भगवान चाहिए,
हल्दी ना तेल ना ही नून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए।
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प्रेम नहीं वहशी दरिंदों के लिए
Jul 13, 2006
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5 प्रतिक्रियाएं:
Abhinavji,
Aapko maine pichhle mahine Atlanta mein suna thha, Is kavita ko padhte samay aisa laga maano aap saamne khade hokar apne bhavya swar mein gaa rahe hoon.
Mere man mein kuch aisi hi feelings hain, par mein aapki tarah keh nahi paata hoon. Thanks for this poem.
Srikant
बढ़िया लिखा। वैसे ये ओज वाली बात तो सुनने में मज़ा है!
कविता अच्छी है । पर कई सरकारें आयी गयीं , हमारा देश वो राह नहीं चुन सका। आखिर क्यूँ ?
कहाँ कौरवी सभा शांति के संदेशों को मानी है
शान्तिदूत को कैद करे, इच्छा रखता अभिमानी है
बजा चुके हैं बहुत बाँसुरी, आओ चक्र उठायें अब
भोले भंडारी से आओ, महाकाल बन जायें अब
कोई शेष नहीं रह पाये भय के रचनाकारों में
लहू शिराओं का है ढलने लगा आज अंगारों में
Bahoot hi laazavaab aur ojasvi kavitaa hai bhaii. Jan man ko jagaane ka yeh upakram jaari rakhiye. Shubhkaamnayen.
Saadar : Jitendra Dave
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