अनुगूँज १८ - धर्म, फुटबाल, देवपुरुष और मैं

Apr 6, 2006










मेरे जीवन में धर्म का महत्व तो है, क्या है ये बताना ज़रा कठिन है। दिमाग पर ज़रा ज़ोर डालने पर ऊट पटांग विचार तो मन में आते हैं जैसे -
१ धर्म का अर्थ है, धनवान का मर्म, धनिया की शर्म, धनुष का कर्म और धतूरे का चर्म।
२ हमारे समाज में अनेक एसे महानुभाव हैं जो धर्म को अपनी जेब में लिए फिरते हैं। मैं भी उनमें से एक हूँ।
३ धर्म धर्म खेलकर कोई सरकार में आ गया तो कोई आने की कोशिश में है। ‍
४ धर्म धनतेरस पर मिलने वाले उस बर्तन की भांति है जिसे हम खरीदना तो चाहते हैं पर जो हमारे बजट से अधिक मंहगा होता है।
५ समाज धर्म की खटिया पर पड़ा पड़ा अंगड़ाइयाँ लेता रहता है।
पर कोई ठोस तथ्य सामने नहीं आ पा रहा है। कभी कभी ऐसा लगता है मानो हमारे जीवन में धर्म का उतना ही महत्व है जितना कि फुटबाल के खिलाड़ी के जीवन में गोल पोस्ट का होता है। जैसे खिलाड़ी मैच भर गोल पोस्ट की ओर फुटबाल लेकर भागता रहता है और कुछ लोग उसे ऐसा करने रोकते रहते हैं वैसे ही हम भी धर्म की ओर भागते हैं और कुछ महानुभाव, कुछ वृत्तियाँ हमको रोकती रहती हैं। खिलाड़ी तो कभी कभी गोल कर भी लेता है पर अपन गेम छोड़ कर बाहर बैठ जाते हैं और इस तमाशे को देखते रहते हैं।

आपको अपना धर्म जनित ताज़ा अनुभव सुनाते हैं। पिछले सप्ताह राशन पानी लेने के लिए सिएटल के 'सेफ वे', नामक स्टोर पर गए थे। सामान बटोर कर बस स्टाप पर खड़े बस के आने का इंतज़ार कर रहे थे। सड़क सुनसान थी तथा दूर दूर तक कोई जानवर भी नहीं दिख रहा था। तभी एक लगभग साढ़े छह फुट ऊँचा, श्यामवर्णी, गजबदनी, लच्छेदार केशराशि वाला साक्षात लफाड़ी टाइप देवपुरुष हमारे निकट आकर खड़ा हो गया। हमको देख कर ऐसे मुस्कुराया जैसे हम लखनऊ के चिड़ियाघर में हुक्कू बंदर को देख कर मुस्कुराते हैं तथा फिर हैलो का कैचम कैच खेला।
फिर बोला, "क्या तुम पाकिस्तानी हो।"
हमनें कहा, "नहीं भारतीय हैं।"
"हमम्, भारतीय - अच्छा तुम्हारा रिलीजन क्या है, मुस्लिम हो क्या?"
हमारे मन में तो आया कि कह दें कि हाँ मुस्लिम हैं, और देखें कि आगे क्या होता है। पर इधर ज़रा डरपोक हो गए हैं, पंगा आदि लेने से बचते हैं। अब पहले जैसा नहीं रहा कि पंगे आगे आगे चलते थे और हम पीछे पीछे। खैर हम बोले,
"हम हिन्दू हैं, पर यह प्रश्न तुमने क्यों किया। यदि हम मुस्लिम होते तो क्या?"
"मैं नहीं चाहता कि कोई भी मुस्लिम अमेरिका में रहे, ये लोग अच्छे नहीं होते हैं।"
हमनें मन ही मन सोचा कि देखो ये व्यक्ति जिसकी जाति नें स्वयं कहीं ना कहीं रंग भेद की नीति को भोगा है आज मुसलमानों को अमेरिका से बाहर करना चाहता है। सोचा चुप रहें पर रह ना पाए तथा उससे बोले कि,
"देखो भाई, किसी भी व्यक्ति को तुम इस आधार पर किसी वर्ग विशेष में नहीं रख सकते कि वह किस रिलीजन का है। अच्छे और बुरे लोग हर जगह हैं और खूब हैं।"
अभी हम प्रवचन को आगे बढ़ाते कि हमारी पत्नी नें हमें बीच में ही रोक दिया। तथा हमसे धीरे से बोलीं कि इससे पंगा ना लो, अन्जान देश बिना मतलब के बात मत बढ़ाओ। इस पूरी घटना में वह देवपुरुष अपनी समझ में अपने राष्ट्र धर्म का पालन करते हुए अमेरिका से मुसलमानों को भगाना चाहता था। हम अपनी समझ में अपने कवि धर्म का पालन करते हुए उसे समझाने का प्रयास कर रहे थे और हमारी पत्नी अपने पत्नी धर्म का पालन करते हुए हमको टोक ही रही थीं कि बस धर्म का पालन करती हुई बस आई और ड्राइवर धर्म का पालन करते हुए ड्राइवर नें बस के द्वार खोल दिए तथा हम लोग यात्री धर्म का पालन करते हुए अपने बसेरे की ओर चल पड़े।

चलते चलते कुछ गज़ल जैसा बन पड़ा, इसे भी पढ़ लीजिए;

धर्म आंखों से बरसते प्यार की मुस्कान है,
धर्म जीवन में छिपे भगवान की पहचान है,

धर्म ही है योगियों की साधना के मूल में,
धर्म सक्षम बाजुओं में शक्ति का तूफान है,

सोचता हूँ देख कर गांधी की उस तस्वीर को,
धर्म से कितना बड़ा अब हो गया इंसान है,

मैं भी मानवता को तीर्थ मानता हूँ दोस्तों,
मुझको ये लगता है मेरा धर्म हिन्दोस्तान है।

अभिनव

4 प्रतिक्रियाएं:

Unknown said...

“मुझको ये लगता है मेरा धर्म हिन्दोस्तान है।“

चलो बढिया है की अमरिका में बसे भारतीय का धर्म अभी भी भारत है। लेकिन मैं सोचता हु की आप सब अमरिका निवासी भारतीय को किस देश से ज्यादा प्यार करना चाहिये? जहाँ पैदा हुए वो भारत या रोटी दिलानेवाली कर्मभूमि अमरिका? क्या आप भारत को अपना धर्म बनाके अमरिका के साथ देशद्रोह नही करते? ओर एक सवाल आया दिमाग में। जरा ये किसी को पूछ कर बताइयेगा कभी की द्वितिय विश्वयुध्ध के समय अमरिका मे बस रहे ज्यादातर जर्मन और जापानीयो ने किसका साथ दिया था? अगर एसी ही नोबत हमारे साथ- न आये पर- आती है तो आप क्या करोगे?
जो भी हो, लेकिन मुझे तो आनंद है की अमरिकामे भी आप का धर्म भारत है। आशा है भारत को फायदा मिले वैसा कुछ न कुछ तो आप वहाँ कर ही रहै होंगे।

Anonymous said...

रवी,

अमरीका मे बसे भारतीय का मतलब है जिन्होने भारतिय नागरिकता नही छोडी है। वे तो बस व्यापार/कार्य के कारण अमरिका मे हैं। उनका धर्म तो भारत ही होना चाहिये.
यदि उन्होने अमरीकी नागरिकता ले ली है तब यह गलत हो सकता है लेकिन मातृभूमी के लिये प्यार कम नही होगा.
रहा सवाल (ए बी सी डी) का उनका धर्म और कर्म अमरीका ले लिये ही होना चाहिये.

आपकी ग़ज़ल लाजवाब है.

Udan Tashtari said...

"मैं भी मानवता को तीर्थ मानता हूँ दोस्तों,
मुझको ये लगता है मेरा धर्म हिन्दोस्तान है।"

बहुत सुंदर रचना है आपकी बात कहती हुई, अभिनव भाई. बधाई.
समीर लाल