दस सिर वाला रावण मारो,
मेघनाद को भी संहारो,
कुम्भकरण की छाती पर चढ़,
विजय पताका अपनी गाड़ो,
पर जीवन की चमक दमक में,
आँख मूँद कर झूल न जाना,
मन में जो रावण बैठा है,
उसको प्यारे भूल न जाना.
मन का रावण महा ढीठ है,
अपने मन की करता है,
कोई अंकुश नहीं मानता,
राम से भी न डरता है,
धीरे धीरे लंका नगरी,
का विस्तार बढाता है,
और अयोध्या तक आकर,
अपना अधिकार जताता है,
स्वर्ण मृगों की धमाचौकड़ी,
आपहरण का कारण है,
जो आराध्य हैं अपने उनका,
जीवन एक उदाहरण है,
तुलसी बाबा लिख गए मानस,
अमल अचल मन त्रोन समाना,
जिसका शब्द शब्द अमृत है,
उसको प्यारे भूल न जाना.
और अयोध्या तक आकर,
अपना अधिकार जताता है,
स्वर्ण मृगों की धमाचौकड़ी,
आपहरण का कारण है,
जो आराध्य हैं अपने उनका,
जीवन एक उदाहरण है,
तुलसी बाबा लिख गए मानस,
अमल अचल मन त्रोन समाना,
जिसका शब्द शब्द अमृत है,
उसको प्यारे भूल न जाना.
विजयदशमी की अनंत शुभकामनाएं.
जय श्री राम! जय जय श्री राम!