अमौसा का मेला - श्री कैलाश गौतम

Jan 16, 2010

अमिताभजी नें ई कविता पर 'अमौसा का मेला' पोस्ट की है. इसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. कैलाश गौतम जी की स्मृतियाँ एक बार पुनः आँखों के आगे आ गयीं. ऐसा लगा मानो हम आकाशवाणी में बैठे हैं और वो कह रहे हों, ज़रा लड़के को चाय पिलाओ. खैर, आप देखिये सुनिए और पढ़िए एक अद्भुत कविता. अमिताभजी को अनेक धन्यवाद् के साथ.




ई भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखा
धरम में करम में सनल गाँव देखा
अगल में बगल में सगल गाँव देखा
अमवसा नहाये चलल गाँव देखा॥

एहू हाथे झोरा, ओहू हाथे झोरा
अ कान्ही पे बोरी, कपारे पे बोरा
अ कमरी में केहू, रजाई में केहू
अ कथरी में केहू, दुलाई में केहू
अ आजी रंगावत हईं गोड़ देखा
हँसत ह‍उवैं बब्बा तनी जोड़ देखा
घुँघुटवै से पूँछै पतोहिया कि अ‍इया
गठरिया में अबका रखाई बत‍इहा
एहर ह‍उवै लुग्गा ओहर ह‍उवै पूड़ी
रमायन के लग्गे हौ मड़ुआ के ढूँढ़ी
ऊ चाउर अ चिउरा किनारे के ओरी
अ नयका चपलवा अचारे के ओरी

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

मचल ह‍उवै हल्ला चढ़ावा उतारा
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा
एहर गुर्री-गुर्रा ओहर लोली-लोला
अ बिच्चे में ह‍उवै सराफत से बोला
चपायल हौ केहू, दबायल हौ केहू
अ घंटन से उप्पर टंगायल हौ केहू
केहू हक्का-बक्का केहू लाल-पीयर
केहू फनफनात ह‍उवै कीरा के नीयर
अ बप्पारे बप्पा, अ द‍इया रे द‍इया
तनी हमैं आगे बढ़ै देत्या भ‍इया
मगर केहू दर से टसकले न टसकै
टसकले न टसकै, मसकले न मसकै
छिड़ल हौ हिताई नताई क चरचा
पढ़ाई लिखाई कमाई क चरचा
दरोगा क बदली करावत हौ केहू
अ लग्गी से पानी पियावत हौ केहू

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

जेहर देखा ओहरैं बढ़त ह‍उवै मेला
अ सरगे क सीढ़ी चढ़त ह‍उवै मेला
बड़ी ह‍उवै साँसत न कहले कहाला
मूड़ैमूड़ सगरों न गिनले गिनाला
एही भीड़ में संत गिरहस्त देखा
सबै अपने अपने में हौ ब्यस्त देखा
अ टाई में केहू, टोपी में केहू
अ झूँसी में केहू, अलोपी में केहू
अखाड़न क संगत अ रंगत ई देखा
बिछल हौ हजारन क पंगत ई देखा
कहीं रासलीला कहीं परबचन हौ
कहीं गोष्ठी हौ कहीं पर भजन हौ
केहू बुढ़िया माई के कोरा उठावै
अ तिरबेनी म‍इया में गोता लगावै
कलपबास में घर क चिन्ता लगल हौ
कटल धान खरिहाने व‍इसै परल हौ

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

गुलब्बन क दुलहिन चलैं धीरे-धीरे
भरल नाव ज‍इसे नदी तीरे-तीरे
सजल देह हौ ज‍इसे गौने क डोली
हँसी हौ बताशा शहद ह‍उवै बोली
अ देखैलीं ठोकर बचावैलीं धक्का
मनै मन छोहारा मनै मन मुनक्का
फुटेहरा नियर मुस्किया-मुस्किया के
ऊ देखेलीं मेला सिहा के चिहा के
सबै देवी देवता मनावत चलैंलीं
अ नरियर पे नरियर चढ़ावत चलैलीं
किनारे से देखैं इशारे से बोलैं
कहीं गांठ जोड़ैं कहीं गांठ खोलैं
बड़े मन से मन्दिर में दरसन करैलीं
अ दूधे से शिवजी क अरघा भरैलीं
चढ़ावैं चढ़ावा अ गोठैं शिवाला
छुवल चाहैं पिन्डी लटक नाहीं जाला

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

बहुत दिन पर चम्पा चमेली भेट‍इलीं
अ बचपन क दूनो सहेली भेंट‍इलीं
ई आपन सुनावैं ऊ आपन सुनावैं
दूनों आपन गहना गदेला गिनावैं
असों का बनवलू असों का गढ़वलू
तू जीजा क फोटो न अब तक पठवलू
न ई उन्हैं रोकैं न ऊ इन्हैं टोकैं
दूनौ अपने दुलहा क तारीफ झोकैं
हमैं अपनी सासू क पुतरी तू जान्या
अ हम्मैं ससुर जी क पगरी तू जान्या
शहरियों में पक्की देहतियो में पक्की
चलत ह‍उवै टेम्पो चलत ह‍उवै चक्की
मनैमन जरै अ गड़ै लगलीं दूनों
भयल तू-तू मैं-मैं लड़ै लगली दूनों
अ साधू छोड़ावैं सिपाही छोड़ावै
अ हलुवाई ज‍इसे कराही छोड़ावैं

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

कलौता क माई क झोरा हेरायल
अ बुद्धू क बड़का कटोरा हेरायल
टिकुलिया क माई टिकुलिया के जोहै
बिजुलिया क भाई बिजुलिया के जोहै
माचल ह‍उवै मेला में सगरों ढुंढाई
चमेला क बाबू चमेला का माई
गुलबिया सभत्तर निहारत चलैले
मुरहुवा मुरहुवा पुकारत चलैले
अ छोटकी बिटिउवा क मारत चलैले
बिटिउवै पर गुस्सा उतारत चलैले
गोबरधन क सरहज किनारे भेंट‍इलीं
गोबरधन के संगे प‍उँड़ के नह‍इलीं
घरे चलता पाहुन दही-गुड़ खियाइत
भतीजा भयल हौ भतीजा देखाइत
उहैं फेंक गठरी पर‍इलैं गोबरधन
न फिर-फिर देख‍इलैं धर‍इलैं गोबरधन

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

केहू शाल सुइटर दुशाला मोलावै
केहू बस अटैची क ताला मोलावै
केहू चायदानी पियाला मोलावै
सोठ‍उरा क केहू मसाला मोलावै
नुमाइस में जातैं बदल ग‍इलीं भ‍उजी
अ भ‍इया से आगे निकल ग‍इलीं भ‍उजी
हिंडोला जब आयल मचल ग‍इलीं भ‍उजी
अ देखतै डरामा उछल ग‍इलीं भ‍उजी
अ भ‍इया बेचारू जोड़त ह‍उवैं खरचा
भुल‍इले न भूलै पकौड़ी क मरचा
बिहाने कचहरी कचहरी क चिन्ता
बहिनिया क गौना मसहरी क चिन्ता
फटल ह‍उवै कुरता फटल ह‍उवै जूता
खलित्ता में खाली केराया क बूता
तबौ पीछे-पीछे चलत जात ह‍उवन
गदेरी में सुरती मलत जात ह‍उवन

अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इह‌इ ह‍उवै भ‍इया अमवसा क मेला॥

- कैलाश गौतम

17 प्रतिक्रियाएं:

कुछ और नहीं लिखूंगा बस ये कि इस कविता को सुनवाने के लिये मैं तुम्‍हारा सदैव आभारी रहूंगा । कहां गये वो लोग जो ये सब लिखते थे । कहां गया वो काव्‍य ।

अभिनव जी,
लीजिये सबसे पहले मैं ही आ गया यह् वीडियो देखने। आपने मेरी बड़ी भारी समस्या हल कर दी।
बहुत-बहुत आभार।

बहुत ही बढ़िया रचना ..

nice

Unknown said...

i ma ilahabad ki mitti ki mahak ba!bahut sundar.

Shardula said...

अभिनव जी , बहुत बहुत धन्यवाद आपका. कल ये देख आनंद आ गया :) खुश रहिये!

आदरणीय अभिनव जी,
कई बार सुना. हर बार एक नूतन अनुभूति है यह कालजयी कृति !
धन्यवाद.

Smita said...

ham log yani main aur mere patidev bahot achche parichit rahe hain kailash ji k..aur hamari fev kavita rahi hai amausa ka mela......itni achchi rachna ka rasaswadan punah karane k liye.....abhinav ji ko bahot bahot dhanyavaad......smita,kk tewari

Smita said...

main aur mere patidev dono hi kailash ji k bahot prashansak hain.....kai baar unhe suna hai...bahot dino baad unki kaljaii rachna sunne ka mun tha....abhinav ji ki kripa se punah kailash ji ko bolte huye dekhne ko mila.......bahot bahot dhanya vaad ..

"अर्श" said...

वाह मजा आगया अभिनव भाई , साहित्य का यह रूप देख अभिभूत हूँ आभार आपका..

बहुत रोचक पोस्ट..

अर्श

Kavi Kulwant said...

wah bhai wah... bahut dino baad aap ke didaar karne pahuncha...

Shardula said...

Abhinav Ji,
Aapki poori audio recording suni kal, aur dang rah gayi... aapko khat likha hai... abhibhoot hoon :)
Khush rahiye,
Shardula

mai radio per yeh kaljai kavita bahut suna hoon aj 15 saal baad ishe dekha aur padha bahut dhanyabad,,...

Sudhir Tiwari said...

A Very very thanks to you. I was looking this kavita since long. I had heard this songs some days before and looking for this passiontaely.

Thanks a lot...

Unknown said...

anosha ka mela kya audio me milega

Neeraja said...

Sir jab mai chhota tha tab amawsya ko sam ko radio pe ye kabita sunne ke liye pura ghar ek sath baith jata tha aur mummy dadi ko to ye puri yad hoti thi superb..

Unknown said...

आज बहुत दिनों के बाद अपनी किताबो की कविताओं को जो बचपन मे अपने विद्यालय में सुना था उसे दोबारा सुनकर मन बहुत ही प्रसन्नचित हो गया । और आज ये दिन आ गए है कि मैं स्वयं कविताये लिखने लगे