"अँधेरी रात का सूरज" - राकेश खंडेलवाल

Oct 6, 2008

भाषा के जादूगर, गीतों के राजकुमार, कविवर श्री राकेश खंडेलवाल जी का काव्य संग्रह "अँधेरी रात का सूरज" छप कर आ गया है. ११ अक्तूबर को सीहोर तथा वॉशिंगटन में उसका विमोचन होना निर्धारित हुआ है. इस संग्रह की एक कमाल की बात तो यह है की राकेशजी को भी नहीं पता है की इसमें कौन कौन सी कविताएं हैं. पंकज सुबीर जी नें चुन चुन कर गीत समेटे हैं और शिवना प्रकाशन द्वारा संकलन छप कर तैयार हुआ है.

ऐसे दौर में जब कवि अपनी पाण्डुलिपि के साथ रुपए के बण्डल लिए प्रकाशकों के द्वार द्वार भटकता है, की भाई मेरी किताब छाप दो, यह संकलन इस बात को पुनर्स्थापित करता है की अच्छे लेखकों और कवियों का सम्मान करना अभी हमारी भाषा और संस्कृति भूली नहीं है. पंकजजी इसके लिए बधाई के पात्र हैं. राकेश जी गीतों के एक ऐसे महासागर हैं जो सदा एक से बढ़ कर एक मोती काव्य संसार को देते रहे हैं.

कभी कभी लगता है मानो इस संकलन नाम कितना सार्थक है, "अँधेरी रात का सूरज". ठंडी पड़ती संवेदनाओं की अँधेरी रात में राकेश जी अपनी रचनाओं से प्रकाश और गर्माहट दोनों का एहसास लेकर आते हैं तथा एक सूरज की भांति अंधेरे की आँखें चौंधिया कर उसे दूर भगा देते हैं.

आज आपको राकेशजी के काव्य पाठ के कुछ अंश दिखाते हैं. ये गीत २००६ में नियाग्रा फाल के निकट हुए कवि सम्मलेन का अंश है.



मेरे भेजे हुए संदेसे

तुमने कहा न तुम तक पहुँचे मेरे भेजे हुए संदेसे
इसीलिये अबकी भेजा है मैंने पंजीकरण करा कर
बरखा की बूँदों में अक्षर पिरो पिरो कर पत्र लिखा है
कहा जलद से तुम्हें सुनाये द्वार तुम्हारे जाकर गा कर

अनजाने हरकारों से ही भेजे थे सन्देसे अब तक
सोचा तुम तक पहुँचायेंगे द्वार तुम्हारे देकर दस्तक
तुम्हें न मिले न ही वापिस लौटा कर वे मुझ तक लाये
और तुम्हारे सिवा नैन की भाषा कोई पढ़ न पाये

अम्बर के कागज़ पर तारे ले लेकरके शब्द रचे हैं
और निशा से कहा चितेरे पलक तुम्हारी स्वप्न सजाकर

मेघदूत की परिपाटी को मैने फिर जीवंत किया है
सावन की हर इक बदली से इक नूतन अनुबन्ध किया है
सन्देशों के समीकरण का पूरा है अनुपात बनाया
जाँच तोल कर माप नाप कर फिर सन्देसा तुम्हें पठाया

ॠतुगन्धी समीर के अधरों से चुम्बन ले छाप लगाई
ताकि न लाये आवारा सी कोई हवा उसको लौटाकर

गौरेय्या के पंख डायरी में जो तुमने संजो रखे हैं
उन पर मैने लिख कर भेजा था संदेसा नाम तुम्हारे
चंदन कलम डुबो गंधों में लिखीं शहद सी जो मनुहारें
उनको मलयज दुहराती है अँगनाई में साँझ सकारे

मेरे संदेशों को रूपसि, नित्य भोर की प्रथम रश्मि के
साथ सुनायेगा तुमको, यह आश्वासन दे गया दिवाकर

- कविवर राकेश खंडेलवाल

11 प्रतिक्रियाएं:

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही!! आभार इस प्रस्तुति के लिए. विमोचन की राह तक रहा हूँ.

"अँधेरी रात का सूरज" के प्रकाशन और विमोचन के लिये अग्रिम बधाई व शुभकामना -
और भाई श्री पँकज सुबीर जी को भी धन्यवाद -
इस तरह निस्पृहता से कार्य करने के लिये -
बहुत स्नेह सहित,
- लावण्या

Anonymous said...

विमोचन उसी कवि सम्मेलन में होने वाला है क्या जिसकी समीरजी आप बात कर रहे थे। राकेश जी को बधाई और अभिनव आपको आभार खबर बताने के लिये, कविता के मामले में आप भी कुछ कम नही और पकंज सुबीर तो वैसे भी बहुतों के गुरू है।

Abhinavji, Rakeshji ki rachnayen main padhta rahta hun. kafi achha likhte hain. aapka unse parichay hai kya ? kal raat humlog ek kavi sammelan men the. adityaji ne achha sanchalan kiya. aur aap kaise hain? mail par likhiyega kya haal chal hain.

अग्रिम बधाई..राकेश जी और पंकज जी को...
नीरज

सोचता रह गया स्नेह जो आपका मैने पाया है उसके लिये कुछ कहूँ
लेखनी ने कहा जो अनुज है मेरा उसकी बातें करूँ, मैं नहीं चुप रहूँ
आपने शीर्ष पर जो बिठाया मुझे, वह था आसन रहा आपके वास्ते
कोशिशें हैं मेरी आपके द्वार पर प्रीत का एक निर्झर बना मैं बहूँ

Shar said...

इतने अच्छी पोस्ट के लिये अनेकों धन्यवाद ! राकेश जी वस्तुत: जादूगर हैं, बस हाथ में जादू कि छ्डी के बजाय कलम लिये हुये हैं । आशा है पुस्तक प्रकाशन पे होने वाले कवि-सम्मेलन का भी अंश भी देखने को मिलेंगे ।

Shar said...

इतने अच्छी पोस्ट के लिये अनेकों धन्यवाद ! राकेश जी वस्तुत: जादूगर हैं, बस हाथ में जादू कि छ्डी के बजाय कलम लिये हुये हैं । आशा है पुस्तक प्रकाशन पे होने वाले कवि-सम्मेलन का भी अंश भी देखने को मिलेंगे ।

Shar said...

इतने अच्छी पोस्ट के लिये अनेकों धन्यवाद ! राकेश जी वस्तुत: जादूगर हैं, बस हाथ में जादू कि छ्डी के बजाय कलम लिये हुये हैं । आशा है पुस्तक प्रकाशन पे होने वाले कवि-सम्मेलन का भी अंश भी देखने को मिलेंगे ।

Ankit said...

मेरे संदेशों को रूपसि, नित्य भोर की प्रथम रश्मि के
साथ सुनायेगा तुमको, यह आश्वासन दे गया दिवाकर

बहुत ही सुंदर गीत है, ये तो एक गगरी है पूरी नदी का इंतज़ार है ११ अक्टूबर को.
- अंकित सफर
http://ankitsafar.blogspot.com/

इतनी सारी शुभकामनायें, इतना अपनापन और बिखरते हुए शब्द हाथ में पकड़े
व्यस्तताओं से जूझता मैं. यद्यपि मेरा प्रयास होता है कि सभी को व्यक्तिगत
तौर पर संदेशों के उत्तर लिखूँ. इस बार ऐसा होना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है
इसलिये सभी को सादर प्रणाम सहित आभार व्यक्त कर रहा हूँ. भाई समीरजी,
पंकज सुबीरजी, सतीश सक्सेनाजी. नीरज गोस्वामी जी, कंचन चौहान जी,अभिनव शुक्लजी,श्रीकांत पाराशरजी,स्वातिजी
गौतमजी, रविकान्तजी, मीतजी, राजीव रंजन प्रसादजी, पारुलजी संजय पटेलजी.
पुष्पाजी, मोनिकाजी, रमेशजी, रंजनाजी, रंजूजी, सीमाजी,अविनाशजी,फ़ुरसतियाजी,
लवलीजी,अजितजी,योगेन्द्रजी,पल्लवीजी,लावण्यजी,शारजी,संगीताजी,अनुरागजी,मोहनजी,
तथा अन्य सभी मेरे मित्रों और अग्रजों को अपने किंचित शब्द भेंट कर रहा हूँ

मन को विह्वल किया आज अनुराग ने
सनसनी सी शिरा में विचरने लगी
डबडबाई हुई हर्ष अतिरेक से
दॄष्टि में बिजलियाँ सी चमकने लगीं
रोमकूपों में संचार कुछ यूँ हुआ
थरथराने लगा मेरा सारा बदन
शुक्रिया लिख सकूँ, ये न संभव हुआ
लेखनी हाथ में से फ़िसलने लगी

आपने जो लिखा उसको पढ़, सोचता
रह गया भाग्यशाली भला कौन है
आपके मन के आकर निकट है खड़ा
बात करता हुआ, ओढ़ कर मौन है
नाम देखा जो अपना सा मुझको लगा
जो पढ़ा , टूट सारा भरम तब गया
शब्द साधक कोई और है, मैं नहीं
पूर्ण वह, मेरा अस्तित्व तो गौण है

जानता मैं नहीं कौन हूँ मैं, स्वयं
घाटियों में घुली एक आवाज़ हूँ
उंगलिया थक गईं छेड़ते छेड़ते
पर न झंकॄत हुआ, मैं वही साज हूँ
अधखुले होंठ पर जो तड़प, रह गई
अनकही, एक मैं हूँ अधूरी गज़ल
डूब कर भाव में, पार पा न सका
रह गया अनखुला, एक वह राज हूँ

आप हैं ज्योत्सना, वर्त्तिका आप हैं,
मैं तले दीप के एक परछाईं हूँ
घिर रहे थाप के अनवरत शोर में
रह गई मौन जो एक शहनाई हूँ
आप पारस हैं, बस आपके स्पर्श ने
एक पत्थर छुआ और प्रतिमा बनी
आपके स्नेह की गंध की छाँह में
जो सुवासित हुई, मैं वो अरुणाई हूँ.

सादर

राकेश खंडेलवाल