नया सृजन हो भी तो कैसे

Oct 31, 2011

आफशोर को काल कर करा, देर रात को सोये साहब,
सात बजे की मीटिंग ले गई, ख्वाबों की सारी चंचलता,
नया सृजन हो भी तो कैसे, गीत नया हम कब गाएं,
काल पृष्ठ पर हस्ताक्षर करने आखिर हम कब जाएं.


आये थे परदेस सोच कर, दो महीने में फिर जायेंगे,

इसका बिलकुल पता नहीं था ऐसे बादल घिर आयेंगे,

वीक एंड पर लाख काम हैं, करने खुद ही इंतजाम हैं,
आलू प्याज़ टमाटर लाना, फ्रिज में ला ला भरते जाना,
कपड़े धोना और सुखाना, झाड़ू पोंछे संग मुस्काना,
बीत रही है जैसे तैसे,
नया सृजन हो भी तो कैसे,

धीरे धीरे वजन बढ़ रहा, ब्लड प्रेशर का रोग चढ़ रहा,
और विधाता ऊपर बैठा नया नया नित खेल गढ़ रहा,
अम्मा बप्पा तड़प रहे हैं, बच्चे इंग्लिश गड़प रहे हैं,
मित्र पुराने बिखरे बिखरे, खुशियों के क्षण बिसरे बिसरे,
घर की बंद बंद खिडकियां, परदे लेकिन निखरे निखरे,
दवा, लड़ाई , आलस, पैसे,
नया सृजन हो भी तो कैसे.

अभिमानों से भरे हुए हैं, बात पे अपनी अड़े हुए हैं,
जिन द्वारों पर सिर झुकना था, उन पर तन के खड़े हुए हैं,
लाभ हानि में उलझ गए हैं, अभिनय, मानो सुलझ गए हैं,
नित घमंड की बाँध लंगोटी, फिट करते दफ्तर में गोटी,
लालच का करते आवाहन, नीयत खोटी, सोच है छोटी,
बड़े आदमी हैं हम वैसे,
नया सृजन हो भी तो कैसे,

नया सृजन हो भी तो कैसे, गीत नया हम कब गाएं,
काल पृष्ठ पर हस्ताक्षर करने आखिर हम कब जाएं.

दिया एक जला कर देखो

Oct 26, 2011

अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.

ये है सच आज अंधेरों का बोल बाला है,
रोशनी पर लगा इलज़ाम भी निराला है,
पर अमावस में ही सजती हैं शहर की गलियां,
प्यासे सपनों में महकती हैं सुहानी कलियां,
कोई तुमसे कहे जीवन की रात काली है,
तुम दिया एक जलाकर कहो दिवाली है,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.

खेल मिटटी का दिखाया है दुबारा इसनें,
चाक पर घूम के है रूप संवारा इसनें,
आग में तपता रहा सिर्फ ज़माने के लिए,
आया बाज़ार में फिर बिकने बिकाने के लिए,
रोशनी देगा तो एहसान तेरा मानेगा,
वरना मिटटी से इसे फिर कुम्हार छानेगा,

अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.
फिर अयोध्या किसी मन की नहीं सूनी होगी,
फिर चमक वक्त के चेहरे पे भी दूनी होगी,
फिर से सरयू भी झूम झूम गीत गाएगी,
फिर से मुस्कान सितारों की झिलमिलाएगी
स्वर्ण मृग सीता को लंका में नहीं भाएंगे,
मन में विश्वास अगर हो तो राम आएंगे,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.


- अभिनव

विनम्र श्रद्धांजलि

Oct 7, 2011




अपने हृदय की iTunes पहचान कर,
विश्व के पटल पर दीपक जला गया,
iPhone जैसा ज़ोरदार आविष्कार किया,
रूढ़ियों की जमी हुई बर्फ पिघला गया,
प्रतिद्वंदियों की आंखों में भी iTears आये,
मन कह रहा है आज आदमी भला गया,
Steve नें उगाये दुनिया में लाखों jobs,
iSad कर परलोक में चला गया.

विनम्र श्रद्धांजलि.

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है

Oct 2, 2011

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है,

मन लगा है स्वयं से नज़रें चुराने,
रुक गया है प्लेटफोर्म पर पुराने,
तन का सिग्नल लाल करती जा रही है,

खेत नदिया ताल पोखर छूटते हैं,
पटरियों पर कितने पत्थर टूटते हैं,
काल की भी दाल गलती जा रही है,

इक भिखारी गीत गाने में लगा है,
एक मोटू लाल खाने में लगा है,
धूप है, बत्ती भी जलती जा रही है,

है थकन से चूर मंजिल पाएगी ही,
आएगी मंजिल, कभी तो आएगी ही,
मन में कोई आस पलती जा रही है,

ज़िन्दगी ऐसे गुज़रती जा रही है,
जैसे कोई रेल चलती जा रही है.

घर में बेटी की किलकारियां

घर में बेटी की किलकारियां,
घर में बेटी की किलकारियां.

जैसे सुबह जगी नींद में स्वप्न कोई सुहाना पले,
जैसे दुःख का अंधेरा ढले, मंदिरों में दिया सा जले,
मंदिरों में दिया सा जले,
बज उठीं श्याम की मुरलियां,
घर में बेटी की किलकारियां.

जैसे सागर की लहरों नें हो, तट के आंचल को आकर छुआ,
जैसे तारों भरी रात में, चांदनी नें पढ़ी हो दुआ,
चांदनी नें पढ़ी हो दुआ,
जैसे मोती भरी सीपियां,
घर में बेटी की किलकारियां.

जैसे भूले हुए गीत का, आ गया हो सिरा याद सा,
जैसे साहिर के शब्दों को पा, खिलता संगीत नौशाद का,
खिलता संगीत नौशाद का,
तितलियों की हैं अठखेलियां,
घर में बेटी की किलकारियां.

रेत के गाँव में जिस तरह, कोई नदिया कहानी कहे,
धुप को मुंह चिढ़ाती हुई, मंद शीतल पवन सी बहे,
मंद शीतल पवन सी बहे,
गीत, झूले, हरी डालियाँ,
घर में बेटी की किलकारियां.

जैस मीठे से संतूर पे, राग कोई मधुर सा बजे,
सात रंगों को संग में लिए, आसमां पे धनुष सा सजे,
आसमां पे धनुष सा सजे,
जैसे महकी सी फुलवारियां,
घर में बेटी की किलकारियां.