घर में बेटी की किलकारियां,
घर में बेटी की किलकारियां.
जैसे सुबह जगी नींद में स्वप्न कोई सुहाना पले,
जैसे दुःख का अंधेरा ढले, मंदिरों में दिया सा जले,
मंदिरों में दिया सा जले,
बज उठीं श्याम की मुरलियां,
घर में बेटी की किलकारियां.
जैसे सागर की लहरों नें हो, तट के आंचल को आकर छुआ,
जैसे तारों भरी रात में, चांदनी नें पढ़ी हो दुआ,
चांदनी नें पढ़ी हो दुआ,
जैसे मोती भरी सीपियां,
घर में बेटी की किलकारियां.
जैसे भूले हुए गीत का, आ गया हो सिरा याद सा,
जैसे साहिर के शब्दों को पा, खिलता संगीत नौशाद का,
खिलता संगीत नौशाद का,
तितलियों की हैं अठखेलियां,
घर में बेटी की किलकारियां.
रेत के गाँव में जिस तरह, कोई नदिया कहानी कहे,
धुप को मुंह चिढ़ाती हुई, मंद शीतल पवन सी बहे,
मंद शीतल पवन सी बहे,
गीत, झूले, हरी डालियाँ,
घर में बेटी की किलकारियां.
जैस मीठे से संतूर पे, राग कोई मधुर सा बजे,
सात रंगों को संग में लिए, आसमां पे धनुष सा सजे,
आसमां पे धनुष सा सजे,
जैसे महकी सी फुलवारियां,
घर में बेटी की किलकारियां.
महा लिख्खाड़
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घर में बेटी की किलकारियां
Oct 2, 2011प्रेषक: अभिनव @ 10/02/2011
Labels: गीत
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