मेजर साहब को समर्पित कुछ छंद

Sep 29, 2009

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दो दिन पहले सूचना मिली कि मेजर गौतम राजरिशी को गोलियां लगी हैं. आदरणीय पंकज सुबीर जी (गुरुदेव) से बात हुयी तो उन्होंने बताया कि पाकिस्तान से कुछ लोग अपनी बंदूकों पर हमारी सांस्कृतिक एकता का बिगुल बजाते, तथा अपने बमों पर सूफियाना कलाम गाते हमारे साथ अमन की इच्छा लिए भारत आना चाहते थे. उन्हीं के स्वागत सत्कार में मेजर साहब को गोलियां लगी हैं. वे अब खतरे से बाहर हैं. मेजर साहब एक अच्छा सैनिक होने के साथ साथ एक बहुत बढ़िया कवि भी हैं. इसी नाते उनसे मेल पर और टिप्पणियों के ज़रिये बातचीत भी हुयी है तथा कहीं न कहीं एक सम्बन्ध भी बन गया है. इस घटना नें बड़ा विचलित किया हुआ है. मेजर गौतम एक सच्चे योद्धा हैं तथा मुझे पूरा विश्वास है कि वे शीघ्र पूर्णतः स्वास्थ्य हो जायेंगे. मेरी और मेरे जैसे हजारों लोगों कि शुभकामनाएं उनके साथ हैं. ये समाचार लगबघ प्रतिदिन हाशिये पर आता था की मुठभेड़ हुयी, इतने जवान ज़ख्मी हुए. पर आज जब मेजर गौतम को गोली लगी है तो पहली बार एहसास हुआ है कि जब किसी अपने को चोट लगती है तो कैसा दर्द होता है. और जो दूसरी बात महसूस हुयी है वह ये कि क्या हमारी संवेदनाएं केवल उनके लिए होती हैं जिनसे हम परिचित होते हैं. तथा हमारे देश के जो सैनिक अपनी जान हथेली पर लिए रात दिन हमारी सुरक्षा में तत्पर रहते हैं उनके प्रति हमारा क्या दायित्व है. एक और बात यह भी कि अपने प्रिय पड़ोसी के साथ कब तक हम प्रेम कि झूठी आस लगाये बैठे रहेंगे. वो हमारे यहाँ बम विस्फोट करवा रहे हैं, हम उनके हास्य कलाकारों से चुटकुले सुन रहे हैं. वो हमारे यहाँ अपने आतंकियों को भेज रहे हैं, हम उनके साथ क्रिकेट खेलने के लिए बेताब हैं. वे हमारे यहाँ नकली नोटों की तस्करी करवा रहे हैं और हम उनके संगीत की धुनों पर नाच रहे हैं. वो हमारी भूमि पर अपना दावा ठोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और हम उनको मेरा भाई मेरा भाई कह कर गले लगाते नहीं थक रहे. ये जो विरोधाभास है ये जानलेवा है. क्या हम एक देश हैं, क्या हम एक आवाज़ में अपने शत्रुओं का विरोध कर सकते हैं. इसी सब उधेड़ बुन में कुछ छंद बहते बहते मानस के पटल पर आ गए हैं जिनको आपके साथ बाँट रहा हूँ.




सिंह के हाथों में देश की कमान है मगर,
लगता है फैसले किये हैं भीगी बिल्ली नें,
उनका है प्रण हमें जड़ से मिटाना, हम,
कहते हैं प्यार दिया क्रिकेट की गिल्ली नें,
यहाँ वीर गोलियों पे गोलियां हैं खाय रहे,
मीडिया दिखाती स्वयंवर किया लिल्ली नें,
जब जब विजय का महल बनाया भव्य,
तब तब तोड़ा उसे मरगिल्ली दिल्ली नें,

हृदय में भावना का सागर समेटे हुए,
ग़ज़ल के गाँव का बड़ा किसान हो गया,
हाथ में उठा के बन्दूक भी लड़ा जो वीर,
शत्रुओं के लिए काल घमासान हो गया,
प्रार्थना है शीघ्र स्वस्थ होके आनंद करे,
मेजर हमारा गौतम महान हो गया,
भारत के भाल निज रक्त से तिलक कर,
राजरिशी राष्ट्र के ऋषि सामान हो गया.

हाथ में तिरंगा लिए बढ़ते रहे जो सदा,
कदमों के अमिट निशान को प्रणाम है,
राष्ट्रहित में जो निज शोणित बहाय रहा,
मात भारती के वरदान को प्रणाम है,
दैत्यों को देश कि सीमाओं पर रोक दिया,
वीरता की पुण्य पहचान को प्रणाम है,
करुँ न करुँ मैं भगवान् को नमन किन्तु,
गोलियों से जूझते जवान को प्रणाम है.

जय हिंद!

1 प्रतिक्रियाएं:

हाथ में उठा के बन्दूक भी लड़ा जो वीर,
शत्रुओं के लिए काल घमासान हो गया,
प्रार्थना है शीघ्र स्वस्थ होके आनंद करे,
मेजर हमारा गौतम महान हो गया,
भारत के भाल निज रक्त से तिलक कर,
राजरिशी राष्ट्र के ऋषि सामान हो गया.
बहुत सुन्दर भाव लिय रचना है इस वीर योद्धा को हमारी भी शुभकामनायें और आशीर्वाद् आशा है जल्दी ही वो ठीक हो कर हमारे सामने होंगे धन्यवाद इस पोस्ट के लिये ।