एक कविता - “आमार शोनार बांगला”

Aug 20, 2009

गूँजा था वन्दे मातरम का गान जहाँ से,

गुरूदेव ने दी थी हमें पहचान जहाँ से,

ये शस्य श्यामला, विवेकानंद की धरती,

साहित्य में डूबी है शरदचंद्र की धरती,

चैतन्य महाप्रभु के अदभुत प्रकाश ने,

हमको दिखाई राह जहाँ थी सुभाष ने,

उड़ती हैं खुशबुएं जहाँ गंगा की छाँव में,

बहती हैं स्वर की लहरियाँ भी गाँव गाँव में,

घर घर में जहाँ होती है माँ शक्ति की पूजा,

बंगाल जैसा राज्य कहीं है नहीं दूजा,

वैसे तो पूरा देश जादू करामात है,

"आमार शोनार बांगला" की और बात है।

 

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अभिनव शुक्ल
206-694-3353

kaviabhinav.com

नव अंकुर मृदा से फूटेंगे, बस वायु वेग संचार रहे,

सक्षम हम हैं यह ज्ञात रहे, बढ़ती क़दमों की धार रहे.

1 प्रतिक्रियाएं:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर.

कलकत्ता सेटल होने का प्लान है क्या भाई?? :)