दिल में जो समंदर है

Jul 10, 2009


धरती को ये पता है चाँद उससे दूर है,
दिल में जो समंदर है उफनता ज़रूर है,

होते ही रात दूर से आती है चांदनी,
हर राह पे, हर मोड़ पे, छाती है चांदनी,
यूँ तो बड़ी मासूम कहती है चांदनी,
शीतल है मगर आग लगाती है चांदनी,
तुम भी कभी देखो ज़रा सा इसमें नहा कर,
ये चांदनी है या ये खुदाई का नूर है,
दिल में जो समंदर है उफनता ज़रूर है.

दूरी ये जिस्म की कोई दूरी तो नहीं है,
पर अपनी कहानी अभी पूरी तो नहीं है,
हो सामने तस्वीर ज़रूरी तो नहीं है,
है बात अधूरी सी, अधूरी तो नहीं है,
चंदा की खूबसूरती ही बेमिसाल है,
धरती को प्यार हो गया किसका कसूर है,
दिल में जो समंदर है उफनता ज़रूर है.

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