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पारस जादू
Jul 9, 2009
शब्द तुम्हारे
हैं या पारस जादू हैं,
रोम रोम से प्यार छलकने लगता है,
नाम मोहब्बत रख दूँ तुमको इश्क़ कहूँ,
पर इससे अधिकार छलकने लगता है।
तुमने अपने दम
पर उड़ना सीखा है,
गिर कर सँभलीं
टूट के जुड़ना सीखा है,
मरुथल में आँसू
की झील बनाई है,
उसमें कमल खिला
कर मुड़ना सीखा है,
मैं अयोग्य, तुमसे
अनुरोध करूँ कैसे,
इससे शिष्टाचार
छलकने लगता है।
साथ तुम्हारे देखूँ
पर्वत तालों को,
सुलझाऊं कुछ उलझे
हुए सवालों को,
हाथ में लेकर हाथ
सुनाऊँ गीत कोई,
आँखों ही आँखों
में पी लूँ प्यालों को,
बोल तो दूँ, क्या
क्या करने के सपने हैं,
पर इससे संसार
छलकने लगता है ।
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