एक संस्मरण तथा ब्लॉग वार्ता

Dec 24, 2008

भाई गौतम राजरिशी जी नें ये सूचना दी की 'निनाद गाथा' पर प्रेषित एक कविता की चर्चा रवीश कुमार जी नें ब्लॉग वार्ता में करी है. उन्होंनें ही समाचार पत्र का यह भाग स्कैन कर के भेजा. अतः उनको धन्यवाद् देते हुए यह पोस्ट कर रहा हूँ.

अपना नाम समाचार पत्र में पढ़ना किसे अच्छा नहीं लगता है. मुझे याद है जब पहली बार बरेली के किसी पत्र में नाम छपा था तो कई दिनों तक हास्टल में भौकाल बना रहा था. बात ये थी की सुविधाओं की कमी के चलते छात्र हड़ताल पर थे और हमनें इसी पर एक कविता लिखी थी जिसको हमारे एक मित्र नें अपने सुंदर हस्तलेख में लिख कर उसकी बड़े साइज़ में फोटोकापी निकाली. फिर वह कविता पूरे विश्विद्यालय परिसर में चिपकाई गई थी. उस कविता की कुछ पंक्तियों का बैनर भी बना था. उस समय हमारा कवि मार सिहाया सिहाया घूम रहा था. सुरक्षा कारणों से कहीं भी कवि का नाम नहीं छापा गया था. पर न जाने समाचार पत्र वाले कहाँ से पता लगा लेते हैं. अखबार में छपा की, 'युवा छात्र नेता एवं कवि अभिनव शुक्ल की निम्न पंक्तियों का बैनर लिए हुए इंजीनिरिंग कालेज के छात्र हड़ताल कर रहे हैं.' अखबार देख कर हम अभी खुश होना शुरू ही हुए थे की थोडी ही देर में सारी खुशी हवा हो गई. डाइरेक्टर महोदय का बुलावा आ गया और कालेज से निकाले जाने की बात होने लगी. वो दिन और आज का दिन हमारी किसी और कविता का बैनर हड़ताल हेतु नहीं बनाया गया. इस घटना के चलते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् एवं एन एस यु आई के लोग अलग अलग आकर हमसे मिले और छात्रों पर होने वाले अत्याचारों का बदला लेने हेतु हमें उनके झंडे तले आने को कहा. पर भाई वो तो घर की बात थी अतः बाहर के बड़े लोगों से दूर रहने में ही भलाई समझी गई. वो कविता पूरी याद नहीं है पर कुछ पंक्तियाँ ध्यान में आ रही हैं;

ज़िन्दगी के साथ ये दरियादिली काफ़ी हुयी,
अब तमाशों में तमाशा बन के रहना छोड़ दो,
जंग का ऐलान करने का समय है दोस्तों,
इस तरह हर ज़ुल्म को चुपचाप सहना छोड़ दो.

खैर, रवीशजी तो बढीया लिखते ही हैं और उन्होंनें हमारी इस कविता को ब्लॉग वार्ता में स्थान दिया ये देख कर हर्ष हुआ. आशा है की आगे भी इसी प्रकार हमारी कविताओं को उनके कालम में, चिटठा चर्चा में और भी जहाँ जहाँ कुछ लिखा जा रहा है वहां वहां जगह मिलती रहेगी. इसी शुभ भावना के साथ फिर मिलेंगे, नमस्कार. ;-)

3 प्रतिक्रियाएं:

Arvind Mishra said...

बधाई !

बधाई जी।
मुझे भी याद है कि एक बार सम्पादक के नाम पत्र छपने पर कई दिन हमारा कालर ऊंचा रहा था।

हा ! हा !!...ये तो बड़ा ही मजेदार वाकिया रहा...
जंग का ऐलान करने का समय है दोस्तों,
इस तरह हर ज़ुल्म को चुपचाप सहना छोड़ दो.

..ये पंक्तियां तो वैसे सचमुच ही आग उगलती हैं

और ये जो एकदम से आके हमारे ब्लौग पर आप इत्ता सारा टिपिया गये हैं,मैं खामखां फूला जा रहा हूं..

नव-पिता बनने पर ढ़ेरों बधाई !