खतरनाक जै

Oct 25, 2008

कोई फर्क नहीं पड़ता है,
मेरे कुछ लिखने से,
या तुम्हारे कुछ पढ़ने से,
बातें बनाने से,
या गाने गाने से,
दोस्ती की कसमें खाने से,
या दुशमनी का ढोल बजाने से,
फर्क पड़ता है,
केवल कुछ कर दिखाने से,
सकल पदार्थ हैं जग मांही,
करमहीन नर पावत नाही.
जै महाराष्ट्र,
जै शिवाजी,
जै भी कितना खतरनाक शब्द है.

4 प्रतिक्रियाएं:

जै अभिनव. आभार.

क्या बात है अभिनव जी....क्या बात कही है.सच में ये "जै" कितना खतरनाक शब्द हो गया है.
इन नपे-तुले शब्दों में पूरी तस्वीर उतारने वाली ये रचना....बहुत सुंदर

जै जै! बोल्ड फॉण्ट साइज बहत्तर में!

kavitaprayas said...

नमस्ते अभिनव ,
कोई भी शब्द बुरा नहीं होता , कोई भी भाषा खतरनाक नहीं होती , उसे बुरा बनाते हैं उसके पीछे छुपे भाव ! देखो, आग दिया भी जलाती है, आग 'आग' भी लगा सकती है | है ना ?
कविता बहुत ही अच्छी है |
दिवाली की शुभकामनाओं सहित ,
अर्चना दीदी