आज शिव सागर शर्मा जी की पानी और मुहावरों वाले छंद सुने. शिव सागर जी से मिलने का सुयोग अभी नहीं मिला है पर उनके छंद सुनकर कुछ अलग सा अनुभव हुआ.
मुहावरा: रस्सी जल गई पर बल नहीं गए
गागर है भारी, पानी खींचने से हारी,
तू अकेली पनिहारी, बोल कौन ग्राम जायेगी,
मैंने कहा, थक कर चूर है तू ला मैं,
रसरी की करूं धरी कुछ विराम तो तू पाएगी,
बोली जब खींच चुकी सोलह घट जीवन के,
आठ हाथ रसरी पे कैसे थक जायेगी,
मैंने कहा रसरी की सोहबत में पड़ चुकी तू,
जल चाहे जायेगी ते ऐंठ नहीं जायेगी.
मुहावरा: अधजल गगरी छलकत जाए
घाम के सताए हुए, दूर से हैं आए हुए,
घाट के बटोही को तू धीर तो बंधाएगी,
चातक सी प्यास लिए, जीवन की आस लिए,
आशा है तू एक लोटा पानी तो पिलाएगी,
बोली ऋतू पावस में स्वाति बूँद पीना,
ये पसीने की कमाई है, न यूँ लुटाई जायेगी,
मैंने कहा पानी वाली होती तो पिला ही देती
अधजल गागरी है छलकत जाएगी.
मुहावरा: चुल्लू भर पानी मैं डूब मरना
हारे थके राहगीर नें कहा नहाने के लिए,
क्या तेरे पास होगा एक डोल पानी है,
मार्ग की थकान से हुए हैं चूर चूर हमें,
दूर से बता दे कहाँ कहाँ मिले पानी है,
बोली घट में है पानी घूंघट में पानी,
भीगी लट में है पानी जहाँ देखो वहां पानी है,
पानी तो है लेकिन नहाने के लिए नहीं है
डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी है.
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कवि शिव सागर शर्मा - मुहावरों का पानी और पानी के मुहावरे
Oct 12, 2008प्रेषक: अभिनव @ 10/12/2008
Labels: भई वाह
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1 प्रतिक्रियाएं:
पानी तो है लेकिन नहाने के लिए नहीं है
डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी है.
गनीमत है, इतना तो है!
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