वंदे मातरम कविता - युवा कवि सौरभ सुमन

Apr 13, 2008

मित्रों इधर एक युवा कवि की कवितायेँ सुनने का अवसर मिला. कवि सौरभ सुमन मेरठ में रहते हैं और वीर रस की रचनायें मंच पर पढ़ते हैं. इधर उनकी कविता 'वंदे मातरम' यू ट्यूब पर सुनने को मिली. उस कविता को आप इस पोस्ट के साथ लगे विडियो में सुन सकते हैं.




ये रहे कविता के शब्द,

मजहबी कागजो पे नया शोध देखिये।
वन्दे मातरम का होता विरोध देखिये।
देखिये जरा ये नई भाषाओ का व्याकरण।
भारती के अपने ही बेटो का ये आचरण।
वन्दे-मातरम नाही विषय है विवाद का।
मजहबी द्वेष का न ओछे उन्माद का।
वन्दे-मातरम पे ये कैसा प्रश्न-चिन्ह है।
माँ को मान देने मे औलाद कैसे खिन्न है।
मात भारती की वंदना है वन्दे-मातरम।
बंकिम का स्वप्न कल्पना है वन्दे-मातरम।
वन्दे-मातरम एक जलती मशाल है।
सारे देश के ही स्वभीमान का सवाल है।
आवाहन मंत्र है ये काल के कराल का।
आइना है क्रांतिकारी लहरों के उछाल का।
वन्दे-मातरम उठा आजादी के साज से।
इसीलिए बडा है ये पूजा से नमाज से।
भारत की आन-बान-शान वन्दे-मातरम।
शहीदों के रक्त की जुबान वन्दे-मातरम।
वन्दे-मातरम शोर्य गाथा है भगत की।
मात भारती पे मिटने वाली शपथ की।
अल्फ्रेड बाग़ की वो खूनी होली देखिये।
शेखर के तन पे चली जो गोली देखिये।
चीख-चीख रक्त की वो बूंदे हैं पुकारती।
वन्दे-मातरम है मा भारती की आरती।
वन्दे-मातरम के जो गाने के विरुद्ध हैं।
पैदा होने वाली ऐसी नसले अशुद्ध हैं।
आबरू वतन की जो आंकते हैं ख़ाक की।
कैसे मान लें के वो हैं पीढ़ी अशफाक की।
गीता ओ कुरान से न उनको है वास्ता।
सत्ता के शिखर का वो गढ़ते हैं रास्ता।
हिन्दू धर्म के ना अनुयायी इस्लाम के।
बन सके हितैषी वो रहीम के ना राम के।
गैरत हुज़ूर कही जाके सो गई है क्या।
सत्ता मा की वंदना से बड़ी हो गई है क्या।
देश ताज मजहबो के जो वशीभूत हैं।
अपराधी हैं वो लोग ओछे हैं कपूत हैं।
माथे पे लगा के मा के चरणों की ख़ाक जी।
चढ़ गए हैं फंसियो पे लाखो अशफाक जी।
वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है।

इस आशा के साथ की आने वाले समय में उनसे अनेक सार्थक विषयों पर बढ़िया कवितायेँ सुनने को मिलेंगी सौरभ को अनेक शुभकामनाएं.


नोट:
१. कवि सौरभ सुमन का ब्लॉग यहाँ क्लिक कर के देखा जा सकता है.
२. मुझसे वीर रस के कवियों में, डा हरि ओम पंवार और डा वागीश दिनकर की कवितायेँ विशेष रूप से अच्छी लगती हैं. कमाल की बात है की दोनों मेरठ के ही आस पास के रहने वाले हैं. ऐसा लगता है की मेरठ की भूमि वीर रस के कवियों के लिए काफ़ी उर्वरक है. मेरा जन्म भी मेरठ में हुआ है अतः लगता है की अब कलम को कुछ वीर रस की उत्साहपूर्ण रचनाओं को लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए.

1 प्रतिक्रियाएं:

जो भी विवाद हो - वन्देमातरम गायन बहुत भाता है।