पाडकास्ट - "नदी के दो किनारे"

May 24, 2007

कहा जाता है कि सज्जनों का संग सदा आनंद प्रदान करने वाला होता है। आज हमारी याहू चैट पर अनूप शुक्ला उर्फ फुरसतिया जी से बातचीत हुई और लीजिए उन्होंने हमें अपना पहला पाडकास्ट पोस्ट करने के लिए प्रेरित कर दिया। आप भी सुनिए और बताइए कि यह कविता आपको कैसी लगी।

7 प्रतिक्रियाएं:

VIMAL VERMA said...

भाई अच्छी लगी आपकी कविता !!!

बहुत अच्छी...

Anonymous said...

अभिनव भाई, बहुत ही सुन्दर कविता लगी, बहुत सुन्दर प्रतीक है नदी और पुल के! क्या आप मुझे इसकी mp3 फ़ाइल भेज सकते हैं? और इसके रचनाकार (जो शायद आप ही हैं?) को मेरी ओर से बधाई.

( मेरा ई-मेल पता: kulsh.amit@gmail.com )

Divine India said...

बहुत सुंदर कविता है…बधाई!!!

Anonymous said...

बहुत खूब! बहुत अच्छी लगी कविता, आवाज और सब कुछ! सबेरे ही बात हुयी दोपहर तक कविता लग गयी, अभी शाम को सुन रहा हूं। बहुत सुंदर। सब लोग नदी के किनारे की कोपल की तरह पुल बनने की सोंचे तो क्या बात है। इस कविता को पोस्ट भी कर दें। किसी के पास डायल अप होगा तो डाउनलोड होने में समय लगेगा। :) लिखते/पोस्ट करते रहें।

Udan Tashtari said...

बहुत खूब. बधाई पॉडकास्ट के लिये. इसका आनन्द ही कुछ अलग है.

Yatish Jain said...

Sir aap to chaa gaye. aapne apana hi channel khol liya. yah ek margdarshan dega yuva pidi ko. vicharon ki abhivyakti ko. yun to maibhi ek digital duniya ka keeda hun soch ratha tha kuch karane ki, aapka blog dekha maja aagaya. kabhi hamare galiyare mai bhi aya kijiye hamara desh abhi bhi aajad nahi hua hai puri tarah se...
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