आज शुऐब भाई के ब्लाग पर एक चुटकुला पढ़ा, उसी का कविताकरण कर रहा हूँ।
तो हुआ यूँ कि एक बार हमने देखा कि हमारे एक मित्र सड़क पर ज़ेब्रा क्रासिंग पर काफी समय से इधर उधर कर रहे हैं, हम उनके पास गए और हमने उनसे पूछा, क्या पूछा ये सुनिएगा,
हमने पूछा जो अपने परम मित्र से,
भला रोड पे तुम करते हो क्यों ऐसे,
उसने बोला, "हूँ गुत्थी में उलझा हुआ,
मुझे चीज़ें समझ में आ जाती हैं वैसे,
कभी काले पे कूदा सफेद गया,
कभी दौड़ा मैं इसपे ओलम्पिक जैसे,
बड़ी देर से सोच रहा हूँ भला,
बजता है पियानो ये आखिर कैसे।
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शुऐब भाई के ज़ेब्रा क्रासिंग वाले चुटकुले का कविताकरण
Feb 16, 2007प्रेषक: अभिनव @ 2/16/2007
Labels: हास्य कविता
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6 प्रतिक्रियाएं:
सही है भाई, मज़ेदार
बढ़ियां है, यहाँ भी हंसे. :)
मुझसे भी नहीं बजा, आपने बजा कर देखा है कभी? :)
याकि हैं सीढियां ये उतरते हुए
और चढ़ये हुए मैं हूँ थकने लगा
खत्म होने में ही ये नहीं आ रही
देखिये अब पसीना टपकने लगा
हमने जब ये पढ़ा, है शुएबी कथा
माथा अपना तभी से ठनकने लगा
और अभिनव ने जब अर्थ ये दे दिया
रुक न पाया हूँ, तब से मैं हँसने लगा
शुऐब भाईः धन्यवाद, आगे भी चुटकुले सुनाते रहिएगा ;-)
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प्रियंकर जीः हाँ, जब इसको पढ़ कर खूब हंसे तो अपने आप ही ये पंक्तियाँ बन पड़ीं, हमने सोचा चलो सभी दोस्तों को सुनाएँ।
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समीर भाईसाहबः धन्यवाद।
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संजय जीः हम तो कोशिश कर कर हार चुके हैं, जूते बज जाते हैं पियानो नही बजता है।
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राकेश भाईसाहबः
आप से तो कहें अब भला और क्या,
आपकी बात तो है निराली बड़ी,
अपनी कविता से भी ज्यादा अच्छी लगी,
आपके द्वारा उसपर हुई टिप्पणी,
मुझे तो लगता है यह कचिता और चुटकला यदि ज़ेब्रा क्रासिंग
सुन ले तो एक बार तो वह भी स्वयं को बजाने का यत्न अवश्य करेगा । अब कभी भी कोई ज़ेब्रा क्रासिंग बिना मुस्कराए पार नहीं कर सकूँगी ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
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