कविता और पब्लिक ओपिनियन

Dec 22, 2006

एक लम्बे समय तक चले,
घनघोर शीतयुद्ध के बाद,
जब घर पर पिताजी नें हमें,
नालायक शिरोमणी की उपाधि करते हुए,
हमारे कवि हो जाने का ऐलान किया,
तब हमें अपना भविष्य बिल्कुल क्लियर दिखाई दिया,
दूर दूर तक कुछ भी नहीं था,
और जो दिख रहा था वह बिल्कुल सही था,
खैर, युद्ध विराम कि स्तिथि के कारण,
एल ओ सी पर शांति व्यवस्था बहाल हो गई थी,
हम और पिताजी आपस के बैर भुला कर,
कभी कभार,
एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा लेते थे,
पिताजी मुस्कुराते हुए सोचते होंगे कि,
'बच्चू, अभी दो ही दिन में आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाएगा,'
हम ये सोचते थे कि,
जब कविता करके आदमी प्रधानमंत्री बन सकता है,
नोबल पुरुस्कार की दौड़ में शामिल हो सकता है,
मंच पर बातें बना कर अच्छे अच्छों को धो सकता है,
तो अपना भी झंडा किसी ऊँची चोटी पर जाकर गड़ जाएगा,
लेकिन अपना भविष्य ऐसे कैसे दांव पर लगा दिया जाए,
कविता के बारे में पब्लिक ओपिनियन क्या है पता किया जाए,
पिताजी तो अपनी राय पहले ही दे चुके थे,
कविता मात्र अमीरों का सौंदर्य प्रसाधन है,
समय नष्ट करने का एक निकृष्ट साधन है,
तुम्हे आई आई टी में सेलेक्ट हुए अपने मामा से कुछ ज्ञान लेना चाहिए,
केवल पढ़ाई की ओर ध्यान देना चाहिए।
मां नें कहा,
बेटा, बचपन में हम लोग कवि सम्मेलन सुनने जाते थे,
अपनी डायरियों में भी कविताएँ नोट करके लाते थे,
कवि वही है जो ह्रदय से सच्चा हो,
वैसे तुम भी लिखते अच्छा हो,
पर अब कविता में कुछ बचा नहीं है,
नए लोगों को ये सब जंचा नहीं है,
छोटे भाई नें कहा,
अबे, मेरे आयल फ्री पापड़ पर चुपड़े हुए मक्खन,
मिट्टी के तेल के पीपे के अन्दर वाले ढक्कन,
तू बड़ा महान है, वीर हनुमान है,
हम जैसे लोगों का राबिनहुड है,
याद रख तेरा लक्ष्य बालीवुड है,
तू वहां पहुँच कर गीतकार बन जा,
फिर मेरे वहां पहुँचने की बात चला,
वैसे कविता में लेना चाहिए नए शब्दों का सहारा,
जैसे कठफोड़वा, फड़फड़ाहट, लक्कड़हारा,
इस मामले में पत्नी से हमारी अच्छी निभ जाती है,
उसे हमारी भाषा समझ ही नहीं आती है,
वो कुछ भी कहती है तो हम हाँ में सिर हिलाते हैं,
हम कुछ भी कहते हैं तो वो ना में सिर हिलाती है।
हम फिर घर के बाहर आए,
अन्य लोगों नें भी अपने विचार बताए,
एक नें कहा, कविता का अर्थ, भूख, गरीबी, कमज़ोरी, कड़की है,
दूसरा नें कहा कि, मेरे पड़ोस में रहने वाले डाक्टर साहब की लड़की है,
तीसरे नें कहा खूबसूरत नायिका है,
चौथा बोला, फिल्मों में गायिका है,
पाँचवा बोला, रिसर्च आब्जेक्ट है,
छठा बोला, एम ए का एक सब्जेक्ट है,
सातवां बोला, प्रश्न गहरा है,
आठवां बोला, हमसे मत पूछो, अपन तो जन्मजात बहरा है,
नवाँ बोला, कविता नदी पर बने सुंदर पुल सी है,
दसवाँ बोला, सूर, कबीर, मीरा, तुलसी है,
कोई बोला, कविता देवी माता के आगे जलती ज्योत है,
कोई बोला, हम क्या जानी क्या होत है,
कोई बोला, कविता चार लाईना सुना रिया हूँ है,
कोई बोला, पुराने ज़माने में ही हुआ करती थी रै,
जब यह सवाल हमनें किया मंचों पर धूम धड़ाके से चलने वाले एक कवि से,
जिसकी प्रसिद्धि की तुलना की जा सकती थी रवि से,
तो वह ज़रा देर तक तो रहा विचारों में खोया,
फिर उसने अपनी भावनाओं को ईमानदारी के शब्दों में पिरोया,
फिर बोला,
जब मैंने लिखना शुरू किया था,
तब कविता मानव मन का सम्मान थी,
सरस्वती माता का अनमोल वरदान थी,
पर जब से मंचों के बाज़ार में आया हूँ,
मेरी आत्मा में एक मलाल बो गई है,
कविता, दुकान पर बिकने वाला माल हो गई है,
इन सब महानुभावों की राय के बाद,
जब हमने अपने हृदय से पूछा,
कि कविता क्या होती है उस्ताद,
तो उसने उत्तर दिया कि,
कविता है बच्चे की किलकारी,
महके हुए फूलों की क्यारी,
चिड़ियों की चहचहाट,
शब्दों की तुतलाहट,
जहाँ कहीं भी भावना है, संवेदना है,
पीड़ा है, वेदना है,
प्रसन्नता है, उल्लास है,
जज़्बात हैं, एहसास है,
और जो वहाँ पर भी है,
जहाँ कुछ भी नहीं है,
कविता वही है।

7 प्रतिक्रियाएं:

Anonymous said...

वाह, कविता अपनी बात कह गई. अंतिम चरण में सुंदर भाव उभर कर आये हैं. बधाई

Anonymous said...

बहुत सु्दरता से आपने अपनी बात खत्म की है । बेहतरीन पेशकश !

Anonymous said...

गुरूदेव की बात से सहमत हूँ -

सचमुच अंतिम चरण में सुंदर भाव उभर कर आये हैं. बेहतरीन कृति. बधाई.

Anonymous said...

बहुत सुन्दर कविता।

हां बहुत बेहतरीन कविता लिखी है। बधाई!

Anonymous said...

vo kuchh bhi kahti hai to hum han me sar hilate hain.
hum kuchh bhi kahte hain to vo na mein sar hilati hai.
-bahot sunder! Asliyat!!

Kamlesh Mehta said...

Thanks Abhinav ji,
Thanks for sharing beautiful moments with us. Reading the report felt like watching a film. I admire; writing the complex emotions in very simple words. Excellent work. Kamlesh Mehta, New York