गर्मियाँ, गर्मियाँ, गर्मियाँ, गर्मियाँ।

Apr 30, 2006

जलती बुझती हुई आ गई गर्मियाँ,
चलती रुकती हुई आ गई गर्मियाँ,
धूप लोगों के सिर पर उबलने लगी,
गर्मियाँ, गर्मियाँ, गर्मियाँ, गर्मियाँ।

वो ठेले वाला,
जो गर्मियों में,
लोगों को लू से बचाने के लिए,
सबको पना पिलाता था,
लू लगने से मर गया है,
हिन्दी अखबार के तीसरे पन्ने पर,
नाम कर गया है,
हम कूलर के आगे मुँह घुसाए,
गर्मी से लड़ रहे हैं,
और उसी अखबार के टुकड़े पर,
चबेना चबाते हुए,
यह खबर पढ़ रहे हैं।
गर्मियाँ, गर्मियाँ, गर्मियाँ, गर्मियाँ।

0 प्रतिक्रियाएं: