उन बिखरे पंखों से उड़ने का दावा है।

Apr 1, 2006

मन में जो आ रहा है, आप भी सुनिए;

पथरीले चेहरों पर मुस्कानों का खिलना,
जीवन की उलझन का अच्छा भुलावा है,
हिंदी अंग्रेज़ी में कौन बात करता है,
बहती तरंगों की भाषा तो जावा है,
ऐसे में अनुभूति नव चाहे अभिनव हो,
पुस्तक का छपना तो मात्र एक छलावा है,
जिन कोमल पंखों को बिखराया आंधी नें,
उन बिखरे पंखों से उड़ने का दावा है।

1 प्रतिक्रियाएं:

क्या आपने रिचर्ड बैक की किताब 'जौनाथन लिविंस्टन सीगल' पढ़ी है| कविता पढ़ कर उसकी याद आ गयी|