वो भी क्या वक्त था जब होली मना लेते थे.

Mar 6, 2006

वो भी क्या वक्त था जब होली मना लेते थे,
सबके चेहरों को रंगारंग बना लेते थे,

सारे मौसम की महक ही बदल सी जाती थी,
आत्मा पूरे शहर की मचल सी जाती थी,
फूल बगिया में अलग ही तरह के खिलते थे,
हर एक अन्जान आदमी से गले मिलते थे,
ऐसा लगता था कि बदल सा गया हो संसार,
पाँव छूते थे बड़ों के लुटाते जाते प्यार,
दुशमनी भूल के खुल जाते थे इस दिल के द्वार,
कहीं पर पेण्ट से होता था हमारा सात्कार,
साथ ले दोस्तों को घूमते थे सड़कों पर,
अपनी पिचकारियों से खुद ही नहा लेते थे,
वो भी क्या वक्त था जब होली मना लेते थे,

कृष्ण और राधा के हम गीत नहीं गाते थे,
किन्तु बदमाशियाँ कर कर के मुस्कुराते थे,
प्यार बहता था मोहल्ले की हसीं गलियों में,
कुछ शरम फूट रही थी वफा की कलियों में,
उनकी नज़रों के इशारों से रंगे जाने को,
उनके घर के करीब रुकने के बहाने को,
ढोल पर ताल बजा गीत नया गाने को,
याद करते हैं उन्हें रोज़ भूल जाने को,
ना कोई चिंता थी और ना थी कोई भी उलझन,
सब परेशानियों में आग लगा देते थे,
वो भी क्या वक्त था जब होली मना लेते थे,

रंग वंग खेल के जब बुद्धू लौट आते थे,
'भूत लगते हो पूरे', माँ की डाँट खाते थे,
ले के उबटन वहीं आंगन में बैठ जाते थे,
रंग गहरे ना थे फिर भी ना छूट पाते थे,
शाम यारों के यहाँ होली मिलने जाते थे,
और अपने भी घर में कितने लोग आते थे,
चिप्स पापड़ कचौड़ी मीठे खुरमे और मठरी,
मोटी गुझिया हो जैसे बड़े सेठ की गठरी,
दही बड़े, आलू, चावल की कचरी,
संग चलती थी बातों की चखरी,
पेट के हाल सदा गड़बड़ा ही जाते थे,
पूरे त्योहार में हम खूब सा खा लेते थे,
वो भी क्या वक्त था जब होली मना लेते थे,

और अब क्या कहें, जीवन के पड़ावों में बहें,
नई दुनिया के नए रंगों को हंस हंस के सहें,
अब तो, हाय कारपेट पे रंग ना गिर जाए कहीं,
किसी सिरफिरे का दिमाग ना फिर जाए कहीं,
मेरी स्किन को भाई सूट नहीं करता गुलाल,
वेट बढ़ जाएगा देखो शुगर और कौलैस्ट्राल,
पाँव में बेड‌़ियाँ डाले हैं अब तो कुछ फेरे,
अब तो चिंताएँ प्रमोशन की हैं हमें घेरे,
बने हर मोड़ पर प्रतिस्पर्धा के डेरे,
और वो दोस्त भी तो अब नहीं रहे मेरे,
लकड़ियाँ काट के सड़कों पे जला लेते थे,
रंग खुशबू में मिला कर के बहा देते थे,
तुम भी पढ़कर इसे सोचते होगे प्यारे,
वो भी क्या वक्त था जब होली मना लेते थे।

5 प्रतिक्रियाएं:

अभिनव आपका हार्दिक अभिनन्दन , हिन्दी चिट्ठा-जगत में |

आपका प्रवेश भी बहुत धमाकेदार तरीके से हुआ है | आपकी होली कविता बहुत अच्छी लगी |

Amit Jain said...

Happy Holi...................

Pratik Pandey said...

अभिनव जी, आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में हार्दिक स्वागत है। आशा है आप ऐसे ही निरन्तर लिखते रहेंगे।

Tarun said...

bahut sahi, holi ki yaad taja ho gayi....holi ki shubkaamnayen

Anonymous said...

very nice, keep it up